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________________ 252525252525 Ranqueo Y50/50/505E505 रोमांचो मुख शोष धर्म सलिलैः वैवणर्यमाकंपनं, ग्रीव भंग युता दृशो विवशता से सिक्त हि कादयो ॥९९॥ युक्तो निश्चसि ते नचेतसि महान्मोहो मृतिश्च, क्रमात्प्रादुर्भवंति विषे रसाद्युपगते दष्टस्य चेष्टाः स्फुटं फिर क्रम रोमांच हो जाता है, मुख सूख जाता है, पसीना निकलने लगता है, मुँह का रंग फीका पड़ जाता है, शरीर कांपने लगता है, गरदन गिर जाती है (टूट जाती है), आंखे एकटक स्थिर हो जाती है, हिचकियाँ चलने लगती हैं, श्वास रहित हो जाता है, चित में बड़ा भारी मोह होकर बुद्धि काम नहीं करती है, शरीर मे विष का रस पहुँच जाने पर डसे हुए प्राणी की क्रम से यह प्रत्यक्ष चेष्टाएं हो जाती हैं। इति वेग: अस्कंदः पक्ष्मणां कुक्षि शोषणं शीतलोनीलः, प्रविष्टा निर्गता चापि जिह्वायस्य म्रियेतसः 118211 || 200 || जिसकी पलकें नहीं हिलती, कोंख सूख जावे, जिसको ठण्डे पानी में डाल दिया जैसा हो, नीला हो गया हो और जीभ निकली हुई हो वह मर जाता है। श्रांति मक्षिका यत्र प्रायो दुर्गंध सत्वरः, वंश मध्यालिशब्दा भो दुष्टः पोत समोपिवा ॥ १०१ ॥ जिस पर मक्खी बहुत बैठती हो, दुर्गंध आने लग जावे, जिसका शब्द बांस के बीच में बैठे हुये भोरे के अथवा नाराज बालक के समान हो जावे । श्यामे शुल्के स्फुटे रक्त इषद्वा स्फुटिते गते, इदृशी चा क्षिणी यस्य भंगुरैः कै न्निमिलिते ॥ १०२ ॥ जिसके नेत्र काले सफेद, कुछ लाल और कुछ फटे हुए हों ऐसी आंखों से भला कौन देख सकता है अर्थात् इस प्रकार के लक्षण वाला मर जाता है। नवं दंता धरे हस्त तल योरपिनीलिमा, दृश्यते यस्य तं मंत्री मृत में वाह्यवश्यतु ॥ १०३ ॥ जिसके नाखून, दांत होंठ और हथेली नीली पड़ जाये उसको मंत्री मरा हुआ ही समझे । यस्य सुराद्रिश्चलितो हिक्का महती महुर्मुहुर्भवति, मुखमपि विमुक्त पवनं सगतो समवर्तिनो हम्टां 11 208 || जिसका (सुर देवता, अद्रि सूर्य ७ सूर्य देवता) अर्थात् मस्तक हिल गया हो, भारी हिचकियाँ 9595Ps 1595ASE?? P/5952525252525 -
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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