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CRICKETERACTRIOTISTS विष्यानुशासन EASTERSTIONSCISCESS बारबार आती हो, मुँह में भी वायु नहीं आती हो वह हर्म्य (महल) की बत्ती के समान समाप्त हो
जाता है।
यस्यौषध जल पानं पीतं नियति तत्क्षा कंठात्,
भीतस्तु सानु नाशिक शब्दोयः सोप्य संग्राह्य ॥१०५॥ जिसको पिलाने से औषधि जल या कोई अन्य पिलाने की वस्तु तुरन्त ही कंठ से निकल जावे और जो डरा हुआ नाक में बोले सो वह भी बचने वाला नहीं है अर्थात् उसकी चिकित्सा नहीं करें।
गुद वदनस्य विकासैः सैत्यं देहस्य शुक्र निर्गमनं,
हत तालुनोक्त भेदो विट भेदो मेहनं स्तब्धं ॥१०६ ॥ जिसकी गुदा और मुँह खुले हुये हो, देह में शीत आरहा हो अर्थात् ठिठुर रहा रहो, वीर्य निकल रहा हो हृदय और तालु खुले हुये हो, भिष्टा निकल रह हो और लिंग खड़ा हुआ हो।
दाह : कंप: चूलः कृष्णे दंशश्च सर्प दशांते,
प्रलपन मंगोद्वेगः लाला श्च वता जल स्या स्यात् ॥१०७॥ शरीर में जलन, कंपन और दर्द तथा सर्प के काटने के पीछे काटा हुआ स्थान काला हो गया हो, जो उद्वेग से बकता हो, जिसके मुँह से जल की तरह लार बहती हो।
हृदय स्या विघटेन कृष्णा सक श्याम दंतत्वं,
रक्तस्य च प्रवृत्ति दग्नाशा रोम रुप गुह्यादौ ॥१०८।। जिसके हृदय के खुलने से काला अस्त (रक्त) निकले, दांत काले पड़ जावे, जिसकी आंख, नाक, बाल, मुँह और गुप्त अंग आदि से रक्त निकलता हो।
एतानि लक्षणानि प्रेक्षते यस्य सर्प दष्टस्य, तस्या वश्व मरणं विषतंत्र विचक्षणांः प्राहु:
॥१०९।। ऐसे लक्षण जिस सर्प के काटे हुए प्राणी के देखे जावे उसकी मृत्यु निश्चय से होगी। यह विष शास्त्र के पंडितों ने कहा है
कृष्णेन साधन स्पर्श कृतेष्टांग न कंपते, यस्य जीवयितुं तन्न प्रभवेदपिपक्षिराट्
||११०॥ जिसको जोर से छूने पर भी उसका अंग जरा भी नहीं कांपे उसको साक्षात् गरुड़ जी और कृष्णजी भी नहीं बचा सकते हैं।
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