________________
59699
विद्यानुशासन 959595955
जो डसने के स्थान एक या तीन रुधिर बहाने वाले तथा बड़ा कष्ट देने वाले होते हैं और उनके चिन्ह कौवे के पैर चक्र तथा कछुवे के आकार के होते हैं। वह पुरुष शीघ्र ही यमपुरी को चला जाता है।
दशं पदं यदि काक पदांकं शोणित वाहिमिता तमनंतं, कृष्णतरं सरसं बहुशोषं दत् यम गेह निरुपण दक्षं
॥ ९३ ॥
यदि काटा हुआ स्थान कौवे के पैर के जैसे आकार का रक्त बहाने वाला अनंत पीड़ा देने वाला अत्यंत काला रसीला बहुत खुश्क हो तो अवश्य ही यह यमालय का निवासी होगा।
हनुमध्ये ग्रंथ यक्षः स्तनौष्ट तल हृदये नाभि लिंग गले,
शस्त्र युग चिबुक कुक्षि स्कंध शिर स्तालु भाल गुदे ॥ ९४ ॥ कक्षे संधिषु च नृणां स्याद् यदि दंशो भुजंग दशन कृतः
यदि पुरुष के टोठी के बीच इंद्रिय, छाती, स्तन, होंठ, तल (थप्पड़ का स्थान गाल) हृदय, नाभि, लिंग, गले के दो शंख, चिवुक (टोठी) कांखा, कंधे, सिर, तालू, ललाट, गुदा, बाहु, मूल या जोड़ो में नाग ने डस लिया हो
तम साध्यं विषं प्राहुः मंत्रध्यानौषधांदीनां, धातोद्धत्यं तर संप्राप्ति वेगं विषस्य जानाति
॥ ९५ ॥
तो उस विष की मंत्र ध्यान तथा औषधि आदिसे भी चिकित्सा नहीं हो सकती है क्योंकि इन स्थानों में काटने से विष तुरन्त ही एक धातु से दूसरी तीसरी इत्यादि सब धातुओं में पहुँच जाता है ऐसा जानना चाहिये ।
सप्ता विवं च विदुस्तं संप्राप्य प्रकृति भेदेन, द्वा पंचाशन्मात्रां स्थित्वा दृष्ट प्रदेश एव विषं
॥९६॥
वह प्रकृति के भेद से सात प्रकार का विष पुरुष के शरीर के प्रदेश से ठहरा हुआ बायन प्रकार के विकार उत्पन्न कर देता है।
प्रथम शिरस मुं पयांति पश्चा ललाटमनु लोचनं याति तत आस्थं यांत्या स्याद्, धमनी स्ताभ्यां क्रमादव्रजेदगात्रं प्राप्ते विष रसं स्याद् अधोवेगः परान परो
|| 3699 ||
विष का रस पहुँचने पर पहले सिर में, फिर मस्तक में, फिर आंखोमें, हड्डी में, धमनी में और
मुख में वेग आता है, फिर वमन होने लगती है, फिर शरीर जरायु जैसा निश्चल हो जाता है।
やちゃちゃちゃ DPSP/5/ ६२१ PI595959 ひろせめてら