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050151985705510151015 विधानुशासन 95015052150SOTES सूर्य आदि चलने वालों के स्वामी नागों का वर्णन किया गया अब प्रतिदिन रात्रि और दिन में के भाग वाले सातों मारक नागों का वर्णन किया जाता है।
नागों के निकलने का समय तद्-तद् घोर शास्त्रे प्रारयोदयति तेषु भागेषु,
कुलिक स्तुभाग संधिष्वनि भुंते नाड़ी कामेकां ॥ ५९॥ यह सातों नाग उस उस घोर शास्त्र से प्रारंभ करके उन उन भागों में उदय होते हैं। किन्तु आठवाँ नाग कुलिक इन योगों की संधि में (मिलने के वक्त में ) एक घड़ी भर के लिये भोग करता है।
अथवा रवि सोदयेश महतामभेण सह कुलिको, ज्ञेयोऽहिना मुदयः क्रमादयं बार भागेषु
॥६ ॥ इसके पश्चात् दिन के विष के उदय होने पर चलने के भागों में बिना आम किये हुए कुलिक और उससे कम दरजे के नागों के उदय को क्रम से जाने।
कुलिक स्योदयकाले यो यो वारेषु मंत्रीभिः कथिताः,
तस्मिन फणि दष्टस्यप्रतिकार विधिन्न जातुभवेत् ॥६१ ।। कुलिक के उदय के होने के दिनों मे जो जो समय मंत्रियों ने बतलाया है उस समय में इसे हुए की चिकित्सा किसी प्रकार से भी नहीं हो सकती है।
गारूड शेन विज्ञेयः प्रत्यहं कुलिको दद्यः तन्न, जानाति चेत् सम्टाक न क्षमो विशनाशनः
॥६२॥ गारूडी को प्रतिदिन कुलिक के उदय होने के समय जो जानना चाहिये। यदि पुरुष उसको अच्छी तरह नहीं जानेगा तो यह विष को नष्ट नहीं कर सकता है।
पंचादश दद्ध युक्त द्विशतं संस्थाप्य सप्त भि गुणोत्,
धुवांक हीन क्रमशः सर्वत्र च षष्टि भि भाज्या ॥६३ ॥ पचास में सूर्य की तत्कालीन राशि आदि को जोड़कर अलग रखें। फिर दो सौ को एन स्थान पर रखकर सात से गुणाकर उस गुणनफल में पहले धुवा(पचास तथा सूर्य राशि आदि) को जोड़कर इस योगफल में साठ का भाग देवे तव सूर्योदय से घड़ी आदि में कुलिक नाग के निकलने का समय आ जाएगा। SYSICS0501501503525६१५ PISODEDISTD35050STOTRY