SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 620
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CASIRISTRISTOTRIODOI5 विधानुशासन PASS1513152215015015 कृतिका आर्द्रा विशाखा पूर्वाषाढ़ा पूर्वाभाद्रा पद पूर्वा फाल्गुनी और भरणी इन नक्षत्रों में जिस प्राणी को सर्प ने काटा है उसकी निश्चय से मृत्यु होती है। भूताऽहि पंचमी षष्टी पक्षांते नवमी तिथी, दष्टस्ट मरणं प्राहु वैनतेय मंतै विदै: ॥५३॥ भूता (कृष्ण चर्तुदशी) अहि(अष्टमी) पंचमी षष्टी पक्षांत (अमावस्या पूर्णिमा) और नवमी तिथि में डसे हुए का मरण गारूडी विद्या का पंडित अवश्य कहे। भानु मंगलं मंदानां नरं वारांश कादिषु, दष्टं सर्पण जानीयात् यमालय निवाशिनं ॥५४॥ भानु (सूर्य) मंगल मंद(शनिश्चर) और इन दिनो के अंश में सर्प से डसे हुए पुरुष को अवश्य ही यमपुरी का निवासी समझे। नक्षत्र दिन वाराणां संटगोलोहि नाहिलां, रक्षितुंतं न शक्रोति वैनतेयोपि किं परः । ॥५५॥ जिस पुरूष को इन ऊपर लिखे हुये नक्षत्रों में तिथि और वारों के संयोग में यदि सर्प किसी को इस लेवे तो उसकी साक्षात् गरूडजी भी रक्षा नहीं कर सकते ओर की तो क्या बात है। शंक्रांत्यां दश्यते दतैः कादवोस्ट योनरः, यदो: पदमवंद्योवा ग्रहणेन स जीविति जो पुरूष नाग के दांतों से संक्रांति चन्द्रमा की दशा और सूर्य की दशा में हसा जाता है वह बच जाता है। चतुसषु संध्या स्वऽहिना दग्धाभिधान योगे च, उदो च मंद कुजयोः परित्यजेत् सर्वथा मंत्री ॥५७॥ जिस पुरुष को नाग ने चारों संध्याओं में (प्रातः दोपहर सायंकाल और अर्द्ध रात्रि) दग्ध नाम वाले योगों, तथा शनैश्वर और मंगल के उदय के समय में डसा हो तो मंत्री उसको सब तरह से छोड़ देवे। नागाः सूयादिनां वाराणां स्वामिनो विनिर्दिष्टाः, तदऽहनिश भागानापि सप्तानांतर्य वेशाः ।।५८॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy