SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 619
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 95905959051 विधानुशासन 95959595195 दूत आने के समय यदि उसके हाथ ऊपर को होकर अपनी कोष को छू रहे हों तो उससे मंत्री उसकी कोख में काटा हुआ जाने । स्पर्शधि कम्पण दूतः स्वांगो देह करेण च पक्षाणः, तत्रो देशे दंशो हि ज्ञातव्यः परोक्ष दष्टस्टा ॥ ४८ ॥ दूत अपने हाथ से अपने जिस किसी अंग को छूता है उसी अंग में उस परोक्ष के काटे हुए को सर्प से काटा हुवा जाने । आगत्य तूर्ण पादं विपरितं चेत स्पृशन्तथा गानि दूतः, कथयति वार्ता वदतत्ते नाहि दृष्टं तं ।। ४९ ।। यदि त शीघ्रता से आकर उलटे तौर से और अपने अंगों को छूता हुआ बात कहे तो उसे सर्प से इसा हुआ जाने । इति दूत लक्षणं नाग के स्थान जीर्ण देव कुल वृक्ष कोटरे वंश मूल मृतकालये हयः. ये वसंति विविधा द्रि गह्वरे ते भवंति जन मृत्यु कारणं ॥ ५० ॥ जो नाग पुराने देव मंदिर वृक्ष की खोखल, बांस के पेड़ की जड़ और श्मशान में रहते हैं उनके काटने से पुरुष मर जाता है। सिंधु संगतिषु चैत्य पादपे द्वीप कूप कलि शेलु शिग्रु षु वैत्रि पथ गहने चतुष्पथेः व्यापदे भवति पन्नगो दशत् ॥ ५१ ॥ नदियों के संगम पर मंदिर के वृक्ष में द्वीप में कुवे में कलि अर्थात् बहेड़े के पेड़ में शेलु ( लिसोडे, के पेड़) में शिशु सहजने के पेड़ में बेंत के पेड़ में गहन मार्ग में ( तिराहे में) चौराहे में रहने वाले इन दश स्थानों में रहने वाले नागों से काटा हुआ पुरुष भर जाता है। इति आहि स्थानं नक्षत्र आदि से जीवन मरण जानना कृतिका र्द्रा विशारया सु त्रिपूर्वा भरणिषु च दश्यते यो हिनां जंतु मृत्युं तस्य समादिशेत् 0505050505050SE PS252525252525 ॥५२॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy