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* विधानुशासन 95951951959
नाशयति चक्र तैलं हेम शिफा कल्क चूर्ण संमिश्र, भूमध्ये विनिखातं समस्त मुन्मादमालेपातः
।। १२५ ।।
चक्र ( तगर) के तेल को हेम (नाग केशर) की जटा के कल्क और चूर्ण में मिलाकर पृथ्वी में गाड़ दे पीछे उस का लेप करने से सब उन्माद नष्ट हो जाता है ।
साधितं षोडशगुणे कुष्मांड स्वरसे घृतं पष्टी, कल्पं प्रगे पीत मुन्मादापस्मृती जयेत्
॥ १२६ ॥
सोलह गुण (कुष्मांड) के पेठा के स्वरस में सिद्ध करके रखी हुयी मुलहटी के कल्क को प्रगे ( प्रातः काल ) पीने से उन्माद और विस्मृति (भूलजाना) दोनों दूर हो होते हैं।
रूस्यों पणत शिग्रोग्रा लोद्रभागाद्विहिंगुभिः, उन्मादाय स्मृति हरे स्यातामंजने नावने
॥ १२७ ॥
रूस्य, उपणत, शियो ( सहजना), उग्रा (सरसो - अजवाइन ), लौंग, भांरगी और दोनों हींग के अंजन करने और सूप से उन्लाई विस्मृति(जपान) दोनों दूर होते हैं।
यष्टि शिरष कुष्टोग्रा रसोन कुटिलै र्हितः, आज पिष्टैरुन्मादापस्मृत्यौनावलां जने
॥ १२८ ॥
यष्टि (मुलहटी), सिरस कूट, उग्रा (अजवाइन ), लहसुन और कुटिल (तगर) को बकरी के मूत्र में पीसकर अंजन करने और सूँघने से उन्माद विस्मृति दूर होती है।
आज्ञासी द्रह निग्रहैक विषयां यो मंत्र वित् प्रक्रियां, मुक्तां मंत्र वरौषध प्रगटिनी मेनां यथा मंत्रिणां
तत् दृष्टे एव भयांकुलो ग्रहगण स्तिष्टेने चेत्कोपिकिं, शक्यः स्तोतुमयं विधि विराचितः सर्वक्रमान्मंत्रिणां
॥ १२९ ॥
॥ १३० ॥
ग्रहों को नष्ट करने वाली जिस प्रक्रिया का वर्णन मंत्र शास्त्र के विद्वानों ने किया है उसको मैने मंत्रो को छोड़कर केवल औषधि रूप में ही वर्णन किया है। इसको जाननेवाले मंत्री को देखते ही ग्रह भय से व्याकुल होकर कोई भी नहीं ठहरता है ऐसी यह विधि सब प्रकार से मंत्रियों से प्रशंसा की जाने योग्य है।
इतिग्रह विधानं अष्टं समुदेशं
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