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55 विद्यानुशासन 2/51 नव समुदेश
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॥ ॐ नमः श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥ अथ तद्गारूडं वक्ष्ये प्राणत्राणाय देहिनां यद्विजानन्नलं हेतुं सद्यः प्राण हरं गरं
॥ ९ ॥
अब उस गरुडी विद्या का वर्णन किया जायेगा जिसको जानने से तुरन्त प्राणान्त करने वाला विष भी नष्ट जा सकता है।
प्रागेलक्षिणानि नागानां निगद्याथ यथाक्रम, संग्रह फणि दष्टांनामु पायैर्द्दशभिर्बुवे
॥ २ ॥
पहले नागों के लक्षणों का वर्णन करके फिर क्रम से सर्प से इसे हुये संग्रह के दस उपायों का वर्णन करूँगा ।
शेषो वासुकि तक्षकः कक्कट सरोज महापद्माः, अथ शंख पाल कुलिका वष्टावेते महानागाः
॥ ३ ॥
अनंत वासुकि तक्षक कक्कोटक सरोज (पद्म) महा पद्म शंखपाल कुलिक यह नागों के आठ भेद होते हैं।
क्षत्रिय कुल संभूतौ वासुकि शंखधरा विषौ रक्तौ, प्रसवा मोदि शरीरौ ज्ञेयौ मध्यान्हे संचरणौ
॥ ४ ॥
वासुकि और शंखपाल क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होने वाले पृथ्वी विषवाले तथा लाल रंग के होते हैं। यह उत्पन्न होते ही सुगंधित शरीर वाले तथा दोपहर में चलने वाले होते हैं ।
॥ ५ ॥
कक्कटक पद्मावपि शुद्रो कृष्णो च वारुणिा गरौ, फल गुड तनौ गंधो निशि संचरणौ प्रकुर्यतो कर्कोटक और पद्मनाग शुद्र काले तथा जलविष वाले होते हैं। कर्कोटक के शरीर में फल तथा पदमनाग के शरीर में गुड की जैसी सुगंध आती है। यह रात्रि में निकल कर चलते हैं।
विप्रावनंत कुलिकौ वह्नि गरौ चंद्रकांत शंकाशी, चरू गंध सुगंधौ तौ वैद्यौ पूर्वान्ह संचरणौ
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॥ ६ ॥