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________________ CATIOTECTERISEAST विद्यानुशासन PIRODIPIERSPIROTES जो स्त्री सौभाग्य से रहित हो या जिसको मासिक धर्म नहीं होता हो अथवा जो भूतों से पीड़ित हो उन सबको ही यह धूप अत्यंत लाभकारी होती है। ॥१२०॥ एतत धूप विधान मंत्री मंत्रं जपन्निमं कुर्यात्, मंत्रोत्तरं वितर वितरये स्वाहेइति प्रणवयूँ पूर्वाः मंत्री इस धूप के विधान को इस मंत्र को जपता हुआ करेॐ वितरये स्वाहा।। " इति पस्मार विधानं " अथ उन्माद लक्षणं यहि कृतं प्रलापश्च विस्मृतं सर्ववस्तुषु, हंति प्रधावति सोन्माद वातस्य लक्षणं ॥१२१॥ बाहर व्यर्थ ही बकवाद करना सब बातों को भूल जाना, मारना, दौडना यह सब उन्माद वात(वायु से होने वाले पागलयान के लक्षण है। मधुक युत मागधीकत खजूर सतावरी, कसेरूणां स विदारीनां कल्कः सर्वमुन्मादमपहरति ॥१२२ ॥ मधुक (मुलहटीया महुआ) सहित मागधी (पीपल), खजूर (छुवारा), सतावरी, कसेरू और विदारी कंद के कल्क सब प्रकार के उन्माद को दूर करता है। पुंड्रेक्षकांड जो रेणुः स राष्ट स्तल्य शर्करः, न्यस्तो धाण पुटे सद्यः सर्योन्माद विनाशनः ॥१२३।। बराबर की शझर पौंड्रक (काला गन्ना, इक्षु = गन्ना) को कोल्हू में पेलकर निकली हुई भूसी में यष्टि (मुलहटी) और बराबर की शक्कर मिलाकर नाक में रखने से अर्थात् सूंघने से सब प्रकार के उन्माद नष्ट होते है। रेणुः क्षीरेण संयुक्त कर्णिकार प्रसूनजः, उन्माद वाधितैनस्ट क्रिययाभि हितोहितः ॥१२४॥ कर्णिकार (कनेर) के फूलों की रेणुः (धूल) को दूध में मिलाकर उन्माद से पीडित प्राणी को सुंघाने से लाभ ही लाभ होता है। S5I5DISASTIDI5T051075६०३ DISTOSTOSTEROIDIOISTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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