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________________ 052525252051/5 Rzigetara 232505252525 ब्राह्मी के स्वरस में सिद्ध की हुयी कूट, वच और संखा होली के गर्भ में गाय के घी के साथ पीने से अपस्मार के सब दोष दूर हो जाते हैं। शिला द्यवानि शिग्वास्थि हिंगु प्रदुषणा मयैः, स्यादपस्मति न स्यात शैलं वस्तु जले स्तं ।। ११४ ।। शिला (कपूर या मेनसिल) यवानि (अजवाइन ), सैजना के बीज या सोभाजन के नीज, हींग, सोंठ, मिरच, पीपल, आमय (कूट) को मिलाकर सूँघने से जल में चलने वाला पहाड़ के समान अपरमार भी नष्ट हो जाता है । कुष्टाजाजी साग्रि व्योष शिला रामठ द्वौ सिद्धं, वस्तु शिवां भसितैलं, नस्याद्वन्यादय परमारान ॥ ११५ ॥ कुष्ट (कुठ) अजाजी (जीरा), अग्नि (चित्रक), व्योष (सोंठ, मिरच, पीपल), शिला कपूर, रामठ द्वय ( हींग और अंकोल), शिवा (हरडे या आँवला) या नीली दोष अडूसा के साथ जल में सिद्ध किया हुआ तेल जंगली अपस्मार तक को नष्ट करता है। अपहरति वृश्चिकालि मागधिका कुष्ट लवण भागनां, चूर्णेन कृतं नस्यं क्षणेन सर्वान्न पस्मारान् ॥ ११६ ॥ वृश्वकालि (विछवा घास), मागधीका (पीपल), कूट नमक भारंगी के चूर्ण से सब प्रकार के अपरमार नष्ट हो जाते है। श्री वासा गरुड: प्रियंगु वंश त्ववगोतुविट जुष्टं, साम्यं पिष्टमजामय मूत्रे छायया शुष्कं ॥ ११७ ॥ कमल (श्री वासा) गरुड़, प्रियंगु फूल, वांस की छाल, ओतु विट बन बिलाव की भिष्टा, जुष्टं को बराबर लेकर बकरी के मूत्र में पीसकर छाया में सुखावे । तै कृत धूपं सिंहो नाम्रा पस्मार राक्षस पिशाचान भूत्, ग्रहांश्च सर्वान ज्वरं च चातुर्थि के हन्यात् ॥ ११८ ॥ यह सिंह नामी धूप है। इसकी धूनी देने से अपस्मार राक्षस, पिशाच, भूतग्रह आदि सब तरह के बुखार तथा चौथे दिन आने वाला चौथिया ज्वर नाश को प्राप्त होता है । सौभाग्यविहीना या पुष्प विहिनाच्चया भवेन्नारी, भूतार्ता विष्टा या तासां वा यं हिते हितो धूपः V/5050/50/50505PSE P5252525252525 ॥ ११९ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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