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STERIODSDISTRI5T015 विधानुशासन P5101510STRIERI5015
राज्यग्र फणि निर्मोक हिंगु निंब छदैः कृतः स्यात,
सिद्धोऽयं महाधूपः शाकिन्याः सा प्रतिक्रिया ॥१०८॥ राई, सरसौं, सर्प कांचली, हींग, नीम की छाल या पत्तों की बनायी हुयी सिद्ध महाधूप शाकिनी को भगा देती है।
मूलेन हय गंधाया हिंगु युक्तेन कल्पिते लेपने,
ग्रस्त गानेषु शाकिनी तं विमुंचति असगंध की जड़ और हींग के कल्क का शरीर पर लेप करने से शाकिनी उसको छोड़ देती है।
पिचुमार निंब पत्रारिष्टेंगुफल समुत्य निर्यासः, तेन प्रलिप्त पुरुषं क्षिप्रं मुंचंति शाकिन्याः
॥११०॥ पिचु (कपास), मार , धतूरा, नीम के पत्ते, अरिष्ट (अरीन), इंगुफल (हिंगोट), गोंद (निर्यास) का पुरुष को लेप करने से शाकिनी उसको शीघ्र छोड़ देती है।
नागारि मातड फल द्विकन्या हिंगुन गंधा हरिताल कृष्टः,
बृषाज मूत्रेण विमर्द्वि तांग भतादास्तं परिहापटांति ॥११॥ नाग (नाग केशर), अरि (कत्थे का पत्ता), नागारि (हरि भेद-दुर्गंध खैर), मार्तंड फल (आक केबीज), दोनों कन्या घृतकुमारी और बड़ी इलायची), हींग, उग्र गंधा (वच या लहसुन) हरताल कंठ वृषाज मूत्र (बेल और बकरी का मूत्र) को मिलाकर शरीर पर लेप करने से भूत आदि उसको छोड़ देते हैं।
इति शाकिनी निग्रह अथ अपस्मारनाशक योग
व्योष त्रिगंधक वचा मार्क वाब्द रजः प्रगे:, उपयुक्तपस्मारं हरे च्च रसायणं
॥११२।। व्योष (प्रकटुक, सोंठ, मिरच, पीपल), तीनों गंध (वच भांगराऔर अब्द) अर्थात् नागर मोया के
चूर्ण का प्रयोग प्रातःकाल के समय करने से अपरमार को दूर करता है तथा यह रसायण है।
ब्रायाः स्वरसै सिद्धं कुष्ट वचाः शरव पुष्पिलका, गर्भे आज्यं गव्यं पीतं सर्वापस्मार दोष हरं
॥११३॥