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05015251525125 विधानुशासन 8505051215201551ST इन्द्र आदि लोकपालों को मंडल के पूर्व आदि दिशाओं में लिखे, मध्य में श्री भगवान अरहन्त देव की प्रतिमा लिखी हो जिसके चारों तरफ मृग, शेर आदि विरोधी पशु हो।
एतत क्रियावसाने प्रदर्शयेत समवशरण मंडलं मतुलं नत्वा वीरं प्र विहाय वैरं सटाति द्दष्टवे
॥४५॥ इस क्रिया के पश्चात् अतुलनीय समवशरण मंडल को बनाकर दिखावे । वह ग्रह महावीर भगवान को व इस समवशरण मंडल को देखकर नमस्कार तथा स्तुति करके बैर को छोड़कर चला जाता
॥ इति समवशरण मंडलं।
भूतानुकंपनतेल पूर्तिक शुकतुंडिका खलु शुक तुंडिकाक तुंडिकाचैव, सित किणि हि काश्व गंधा भूकूष्मांडिद वारूणिका ॥४६ ।।
पूति दमनोग्र गंधा श्री पर्ण्य जगधं कुटज कुकरंजा,
गो अंगी श्रृंगी नागं सर्प विर्ष मुष्टिं का जीरा ॥४७॥ पूतिक, शुक, तुंडिका काक तुंडिका, सफेद किणि, हिका, असंगध ,भूमि का कोहला, इन्द्र वारूणि पूति दमन उय गंधा ,श्री पर्णी, असंगध, कूडा ,कडवा करड, गो श्रृगी, काकड़ा, सींगी नाग दोन सर्प विष मुष्टिक, अंजीर, इलायची ,वचा ,भद्र ,पर्णी, वरवरी, कुटकरंजा ,काकडा श्रृंगी ,कुचिला इत्यर्थ
नीली सद्चकांकित रखरकर्णी गोक्षुरश्च विष वकुली,
कनक वराहं कोला चा स्थि प्रसूनश्च लज्जरिका ॥४८|| नीली रूत चक्रांकी स्वरकी गोखरू विष वकुली (मालश्री की छाल) कनक (धतूरा) बराही कंद अंकोल की गुठली और फूल लजालू
गर्वाकं मदन तरू बिभति तरूरपि च काक जंया च,
वंध्य च देव दारू च वहती द्वितीयं च सहदेवी ॥४९ ॥ पाटली मदन का पेड़, बहेड़ा, काक, जंघा (सूरजमुखी) बांझ, ककोडा, देवदारू, दोनों कटेली सहदेवी
गिरी कर्णिका नदी मल्ली काक शिला कंक हस्ति।
की च स्नूही निंब महा निंब शिरीष लोकेश्वरी धान्यो ॥५०॥ SSIOISTOTSITE5I0510525/५९० PTSDISTPISIRISTOT5125IOSI