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________________ 95959595PSPS विधानुशासन 259595296959 अति समय मंडलं रेखा त्रयेपासम्यक चतुरस्तं पंचवर्ण चूणेन, प्राग विद्विलिरा मंडल मध्ये शिवं विलिख्येत् तीन रेखाओं से पहले के समान पांच वर्ण के चोकोर मंडल बनाकर उसके बीच में शिव में लिखे । तत्राभ्यंतर दिग्गता कोष्टेषु जयादि देवता विलिख्येत्, गौर्यादि देवता स्ताश्चै शानाद्येषु कोष्टषु आया जयाथ विजया तथा जिता पराजिता गौरी गांधारी राक्ष्स्यथ मनोहरी चेति देव्यास्ता || 80 || ॥ ४१ ॥ उसके अन्दर के आठों कोठों में जया आदि देवियों के नाम लिखे और ईशान आदि कोठो में गौरी आदि देवियों के नाम लिखे । इनमें पहले जया, , फिर विजया, फिर अजिता, फिर अपराजिता, दिशाओं में लिखे फिर विदिशाओं में गौरी, गांधारी, राक्षसी और अंत में मनोहरी देवी का नाम लिखे । अथ तद्वाह्यावरण स्थितेषु कोष्टेषु तान विलिखेत, कादीन मांतान क्रमाचतुर्विंश तीन वर्णान सत्यारव्ये मंडलेऽस्मिन् ग्रहावेश यितव्यो सत्यं ॥ ४२ ॥ फिर उस सत्य मंडल के बाहर के भाग के कोठो में क आदि ३४ वर्णों की मंत्रिकाओं को क्रमशः लिखे इस सत्य नाम वाले मंडल में ग्रह अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं। इति सत्यं मंडलं मान स्तंभा सरांसि इति सूत्र क्रमेण समव सृमति, मंडलं पश्चात् ऐवं नवग्रह देवता विलिखेत् ॥ ४३ ॥ मान स्तंभ तालाब इत्यादि सहित समवशरण मंडल को शास्त्र के अनुसार लिखे। इसके पश्चात नव ग्रह देवताओं को लिखे। इंद्रादि लोकपालान् मंडल पूर्वादिक्षु संलिख्टा, मध्ये चाऽर्हत्प्रतिमा मन्योन्यारी न मृगान्परितः 9595250 251/52514 P5252525252525 ॥ ४४ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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