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________________ 0505121SOTRIOTIST015 विधानुशासन 50ISDISTRI521525 कृष्णाष्टम्या मथ तदभूत तिथौ कुजांशाभ्युदटो, दुष्टगृहम शुभ ग्रह लगे प्रविसर्जोज्ज्ञ |॥३४॥ कृष्ण पक्ष की अष्टमी को या उस भूत की तिथि को अथवा मंगल के निकलने पर उस दुष्ट ग्रह को अशुभ ग्रह और अशुभ लग्न में छोड़े। इति सर्वतो भद्र मंडलं अथ समय मंडलं विपुलाष्ट दलं पद्म विलिरव्य बाटस्य पंचवर्णेन, चूर्णन चतुष्कोणं दिलीप मंडलं चिलिरवेश आठ दल वाले बड़े कमल को लिखकर उन पांचों रंगों के चूर्ण से चौकोर बड़ा मंडल बनाये। हरिन वराह तुरंगम गज गोवषभ महिष करभ मारि मुरवं, फल वरद हस्त युक्तं सालंकार सलक्षणं नारीणां ॥३६॥ फिर हिरण, वराह, घोडा, हाथी, गाय, भैंस बैल, करभ (ऊँट) और बिल्ली के मुख तथा फल और वर को देने वाले हाथ सहित अलंकार सहित स्त्रियों के सुलक्षण है। पूर्वाधष्ट सुपत्रेषु अनुक्रमात् सुदंर लिरवे दूपं, तन्मध्ये षट्कोणं शिरिवं भवनं ससिरव भालि ॥३७ ।। पूर्व आदि आठों दलों पर सुंदर रूप से लिखे। उसके बीच में एकस्य छ: कोण वाला मोर का भवन बनाकर उसमें मोर बनावे। उर्दाधो रेफ युक्तं यां यी यू यों तथैव यं याः सहितं, पूर्वादि कोष्ट मध्ये विलित्य वामे तदगेषु ॥३८॥ ऊपर और नीचे रकार सहित यां यी यूं यों यः बीजों को उनको दिशा से आरंभ करके बाईं तरफ को लिखे। . षट्कोण भवन मध्ये गुंतत्काष्टां तरेष्वपि लिखे च, समयं ग्राहि तव्यो ग्रहः स्फुटं समय मडलारव्येस्मिन् ॥३९॥ षट्कोण भवन के भीतर और उस कोटे के भीतर भी यू लिखे। यह से पकडा हुआ समय मंडल में प्रकट हो जाता है, अतःएव यह समय मंडल है। CHRISTOTSTOTRIOTSTORTO51५८८ PSIOSSIPTSDISTRI52525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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