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________________ PSP595959 विद्यानुशासन 259597 めですです फिर ग्रह के दूसरे रूप को पत्ते और वस्य पर पृथक-पृथक लिखकर बुद्धिमान पुरुष उसकी संधियों रकार पिंड़ लिखे । नाभौ क्लीं हृदये चहीं सिरसि च द्रीं पादयोः श्रीं गुदे द्रां क्रौं मूर्द्धन्ज रुद्रं म कुशम घोट चो परि ब्लूं शब्द गले हेर्य जानुन्यति निरुद्धम मलं पाशरचनं कर्णयोः रु दश शब्द को स्तनौ च परं भूता कृतौ विन्यसत् सम्पूर्ण प्राणी की आकृति को कानों, जंघओ, शब्द समूह और शरीर में निम्नलिखित क्रम से बीजों को रखे। ॥२९॥ ॥ २९ ॥ नाभि में क्लीं, हृदय में ह्रीं, सिर पर द्रीं, दोनों पाँचो में क्षीं, गुदा स्थान में द्रां मूर्द्धन अर्थात् मस्तक में क्रौं आं, अधो स्थान में खूं, ऊपर ब्लूं, गले में र्यं, घुटनों में अं और टं, दोनों कानों में टं 'तथा आं, दोनों जांघों में भूत का आकृति में र सर्वत्र लगाये । कुंडे प्रपूर्येता कफलिकायां पचेच पुतलिका, पत्र कपठहि परि घट्टयेत्पटं तापयेत्कुंडो 11 30 11 सततमथ होम मंत्र प्रपठन्तिति निग्रहेषु विहितेषु, दग्धोस्मि मारितोहं हंतोऽहं मिति रोदिति कठोरं ॥ ३१ ॥ फिर कुंड में कफलिका डालकर उस पुतली को पकावे और पत्ते को कढाही में घोटे तथा वस्त्र को कुंड में गरम करे | इसके पश्चात् निरंतर होम करके मंत्र पढता हुआ इसप्रकार निग्रह किये जाने पर ग्रह पुकारता है कि जला, खूब चोट लगती है, मैं मरा कहकर खूब रोता है। प्रागेव सप्त दिवसान त्रिन्वा लोक प्रसिद्धि लाभांर्थ, प्रविवृर्त्तये गृहं मंडलाद्विना स्वेच्छाया मंत्री पश्चात् सप्तम दिवसे तृतीयेऽथवा महत्यस्मिन, विधिनैव सर्वतोभद्र मंडले सौ विसुर्जः स्यात पहले सात दिन या ठीक तीन दिन लोक में प्रसिद्धि पाने के लिये मंत्री पुरुष ग्रह को खूब नचावे । फिर सातवें दिन या तीसरे दिन उसको सर्वतोभद्र मंडल में विधिपूर्वक नचाकर मंडल का विसर्जन करे । ॥ ३३ ॥ P5PS 259595५८७ PSP59695959595 ॥ ३२ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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