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________________ PAPSPSPA 55X विधानुशासन 25P/59 おどろどろ कोयल बूटी, नदी, मल्लिका, अर्कशैल, हस्ती कर्ण थोहर नीम बकायण सिरस लोकेश्वरी धान्य पारीत महावृक्षौ कटुका हारोपयोगी मूलानि, सित रक्त जया दंडी ब्राह्मीन्यथ कोकिलाख्यश्च 1148 11 हारसिंगार, महावृक्ष, कटुक हार, • उपयोगी जड़ सफेद और लाल जया दंडी ब्राह्मी और ताल मखाना भृंगश्च देवदाली कटु तुंबी सिंह केशरी योषालिका, अर्क भक्तो यति मन्यति मुक्तक लताश्च ॥ ५२ ॥ भांगरा, देवदाली, कड़वी तुंबी, सिंह, केशर, द्योषालिका, अर्कभक्ति (सूरजमुखी) यति लता मुनि लता अति मुक्तिकलता भंग पुष्प नागकेशर शार्दू लनरवीश्च पुत्र जीवीश्च, सिगुश्च तथेरं स्तुलसी संध्या अपा मार्गश्च ॥ ५३ ॥ करिकर्भ रवि चूर्णत वृषणोष्ट छाग मुत्र मिश्रेण, तच्चम्मं कार कुंडां बुनौषध पेषयत् सर्व 114811 भंग पुष्पी, नागकेशर, शेर के नाखून, जीधिपूता, सहजना, ऐरड, तुलसी, संध्या, आधी, गजमद, अर्कपुष्पी इन सबका चूर्णकर बैल ऊँट बकरी का मूत्र मिलाकर इन सब औषधियों को चमार की कुंडी के पानी से पीसे । कृत्वा द्विभाग में कांन्यस्य काथं प्रगूह्यतैः मूत्र :, अर्धावर्तः कार्थ द्वितीय मालोढयेत् भागं ॥५५॥ उसके दो भाग करके एक भाग क्वाथ मूत्र के साथ तैयार करे और आधे भाग में दूसरे भाग को डुबो देवे । कंगु करंज एरंडाकोल विमद्विनिंब तिलतैलं, समभागेन गृहीतं काथेन समंक्षिपेत कोथ ॥ ५६ ॥ मालकंगनी, करंज, इरंड को पीसकर अंकोला, नीम और बकायण व तिल के तेल को बराबर लेकर क्वात के साथ काथ में ही डाल दे । नोट :- ( लोक में विमर्द्धि के साथ पर विभीत द्वि शब्द भी हो सकते हैं तब इसका अर्थ मिलावे और दोनों नीम अर्थात् नीम और बकायण होंगे । ) 959595959 [५९१ P/59595959SPSP5
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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