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________________ 252525252525 fengouern_252525252525 दहन छेदन प्रेषण ताडन भेदन सु वंद्य मन्याद्वा पाश्र्व जिनाय, तदुक्ता यद्भक्ति पदं तदेव मंत्र: स्यात् ॥ ८२ ॥ वह पुरुष छेदना जलाना भेदना, काटना, मारना और बाँधना तथा अन्य कर्म की भी श्री पार्श्वनाथ भगवान के लिये हैं। यह कहकर जो पद कहता है वही मंत्र बन जाता है । दिव्यमदिव्यं साध्यम साध्यं संबोध्य बीजम बीजं, ज्ञात्वा यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् || 23 || वह दिव्य अदिव्य साध्य असाध्य कहने योग्य और न कहने योग्य तथा बीज और अबीज को बिना जाने हुए भी जो पद कहता है वही मंत्र बन जाता है। भुकुटि पुट रक्त लोचना द्भयं कराद्ध प्रहास हा हा शब्दैः, मंत्र पदं प्रपठन सन् यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥ ८४ ॥ यह भौं चढाकर, लाल नेत्र किये हुए, भंयकर अट्टाहास करते हुये हा-हा शब्द करता हुवा अथवा मंत्र पद को पढ़ता हुआ भी जो कुछ कहता है वह मंत्र बन जाते हैं । यद्धा चोद्यं वांछित तत् तत् कुरुते द्विषद्विधं बीजं. ध्यात्वा यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रो भवेत्सधोः ॥ ८५ ॥ मंत्री जिस जिस कार्य को करना चाहता है शत्रु को जानने वाला बीज वही वही कर देता है । इस वास्ते बीज का ध्यान करके द्वेष करने का या बंध करने का जो पद कहा जाता है वही मंत्र होता है । अति वहला ज्ञान महांधकार मध्ये परिभ्रमन् मंत्री, लब्धपदेश दीपं यद्वक्ति पदं तदेव मंत्रः स्यात् ॥ ८६ ॥ मंत्री पुरुष अत्यंत गहन अज्ञान रूपी महांधकार के बीच में घूमता हुआ जो उपदेश रूपी दीपक को पाकर जो भी कहता है वही मंत्र होता है। नपठतु माला मंत्र देवी साधयतु नैव विधिना च, श्री ज्वालिनी मंत ज्ञो यद्वरिक्त पदं तदेव मंत्र: स्यात् || 612 || नो माला मंत्र के ही मंत्र का पाठ करे और न यहाँ देवी की ही विधिपूर्वक साधना करे किन्तु श्री ज्वालामालिनी देवी के मत को जानने वाला जो भी कहता है वही मंत्र हो जाता है। 95959595959595 ५७६ P595969595‍
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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