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________________ S5DISTRISTORSDISTD विधानुशासन PASS151055815CTSIDESI ॐझाल्दा ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं द्रां द्रीं संतं वं मंहं संसर्व दुष्ट ग्रहान् उत्थापाउत्थापय नट-नट नत्य-नृत्य हां आं क्रों की ज्वालामालिन्या ज्ञापयति स्वाहा ॥ आप्यायन मंत्रः आप्यायन मुद्रा यह आप्यायन मंत्र है। इसकी आप्यायन मुद्रा है। सर्व निरोधे चाप्यायन मंत्रेणानेन साक्षतं सलिलं, अभिमंत्र्ट ताडयतक्षालयेत च विकृत निग्रहोपशमनं स्यात्।। ७७ ॥ इस सर्य निरोध आप्यायन मंत्र के द्वारा अक्षत और जल को अभिमंत्रित करने और अक्षत को मारने और जल से धोने से सब ग्रहों का नाश होता है। आत्मनिचान्यास्मिन वा प्रतिबिंबे वाथ निग्रह विहिते, ग्रह निग्रहो भवेदिति शिस्विम देवी मतं तथ्यं ॥७८॥ इस या अन्य किसी निग्रह मंत्र का प्रयोग करने से पाहों का निग्रह हो जाता है। ऐसा ज्वालामालिनी देवी का सिद्धान्त है। शब्द कशां कुशं चरणैः हय नागमोदिता टाथा यांति बुधैः, दिव्या दिव्या सर्वेनुत्यंति तथैव मंत्र संबोधनतः ॥७९॥ जिसप्रकार घोई और हार्थी शब्द कोडे अंकुश और कशा कोरड़े अथवा ऐडी से आगे चलते हैं उसी प्रकार पंडितो के शब्द पर दिव्य और अदिव्य ग्रह सभी नाचते हैं। व्यक्ताक्षर वर मंत्रे भित्या दुष्ट ग्रहस्य हत्कर्णन, ययचिन्तयति बुधः स्तत्त चोपं करोति भुवि। ॥८०॥ पंडित पुरुष के कहे हुये उत्तम मंत्री के अक्षरों से दुष्ट ग्रहों के हृदय और कानों के छेदने से मंत्री जो जो सोचता है | संसार में वही वही होता है। तत्कर्मनात्र कथित कथितं यद यद शास्त्र ष गारूडे सकलं तदभेदमाप्य मंत्री यदक्ति पदं तेदव मंत्र स्यात ॥८॥ जिस भेद को पाकर मंत्री जो कुछ भी कहता है वहीं मंत्र बन जाता है । वह कर्म यहाँ नहीं बतलाया गया है। बल्कि उसका कथन पूर्ण रूप से गारूडी शास्त्र में किया गया है । OTIRISRIDDISTRISTRI505/५७५ PISTRISPEPISRASTRASTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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