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विधानुशासन भक्त्यादि छांत पिंड : पंच कला अथो रफ युक्तं चांत निरोधः सर्वेषा ग्रह नाम्रा मंत्राणि छिंद हुं फट ये ये
॥ ७२ ॥
ॐ एम्ल्वर्यू ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं प्रां प्रीं हूं छ्राँ छ्रः हा सर्वेषां ग्रह नाम्रा मंत्राणि छिंद-छिंद हां आं क्रों क्षीं ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुं फट घे घे ॥ यह अंत्र छेदन मंत्र है। इसकी अंत्र छेदन मुद्रा है ।
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भक्ति रहितेन्दु पिंडं ठ्रीं हाः सर्व दुष्ट ग्रहान् तडित्पाषाणै वाइय-ताडय भूम्याद्विः पातय हुं युगं च फट फट येये ॥ ७३ ॥ ॐ हम्ल्यू ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं तडीत्पाषाणैः स्ताइय स्ताडय हा सर्व दुष्ट ग्रहान् तडिष्टपाषाण ताडा ताडय पातय पातय हां आं कों क्षीं ज्वालामालिन्याज्ञापयति हुं हुं फट फट घे ये ॥
विद्युत्मंत्र:
यह ग्रहों का हनन मंत्र है। इसकी विद्युत्मुद्रा है ।
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विनयः स एव पिंड स्तदीय मथ तत्व पंचकं सः निरोधः,
सर्वेषा ग्रहणाम्रा कुरू सर्वान्नि ग्रहां स्तथा फट घे घे || ७४ || ॐ कम्यू ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं वां यूं वीं द्रौं वः हाः सर्व दुष्ट ग्रहान स्तंभय स्तंभय स्तोभय स्तोभय ताइय-ताडय अक्षिणी स्फोटय-स्फोटय प्रेषटाप्रेषय दह दह भेदय-भेदय बंधय बंधय ग्रीवा भंगा-भंगा अंत्राणि छेदय-छंदा हन हन हां आं क्रों क्षीं ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुं फट घे घे ॥
सर्वकार्मिक मंत्र: तर्जनी मुद्रां
यह सर्वकार्मिक मंत्र है। इसकी तर्जनी मुद्रा है।
विनयो निर्विष पिंड : स्व पंच तत्वं निरोध सहितं, च सर्व ग्रहान समुद्रे निम्मंज हुं तथैव फट् ये ये
।। ७५ ।।
ॐ इम्ल्यू ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ब्रां ब्रीं बूं ब्रौं ब्रः हा सर्व दुष्ट ग्रहान समुद्रे मज्जय-मज्जयहां आं कों क्षी ज्वालामालिन्या ज्ञापयति हुं फट् घे घे ॥ यह मज्जन मंत्र है इसकी मज्जन मुद्रा है।
निर्विष पिंडं सं तं वं मं हं सं ग्रहानथ समस्तान्, उत्थापय द्वयं नट नृत्य द्वितियं तथा स्वाहा
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॥ ७६ ॥ P59050s