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________________ 959595952 विधानुशासन PPP 9595 ॥ ५० ॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रीं हः ज्वालिनी पादौ च जघन मुदरं वदनं शीर्ष रक्ष द्वय होमांत पर गात्र पंच के स्थाप्या इत्यादि ऊपर के श्लोक के अनुसार इस मंत्र का अपने पांचों अंगों में अर्थात् पांव, जांघें, पेट, मुँह, सर में ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः बीजों का ज्वालामालिनी शब्द को पांचो अंगो में लगाकर रक्ष रक्ष स्वाहा के साथ स्थापित करे। ॐ हां ज्वालामालिनी पात्रस्य पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ ह्रीं ज्वालामालिनी पात्रस्य जघनं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ हूं ज्वालामालिनी पात्रस्य उदरं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ ह्रीं ज्वालामालिनी पात्रस्य वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ ह्रः ज्वालामालिनी पात्रस्य शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा क्ष ह भ म य र झकांत ठकार पूर्णेदुयक्त निर्विष बीजे:, विदुर्द्ध रेफ सहितैर्मल वायूं (कार) संयुक्ते द्विषद्बध बीजैः ॥ ५१ ॥ स्तंभ स्तोभ स्तानमध्य प्रेषण सुदहन भेदन बंद्यं, ग्रीवा भंग गात्र छेदन हनन माप्यायनं ग्रहणां कुर्यात् ॥ ५२ ॥ भरघझख ठ कार पूर्ण चंद्र औरह निर्विष बीज को अनुस्वार और उर्द्ध रेफ सहित बीजों को मलवरयू से मिलाकर हु फट और घे घे पल्लवों से युक्त करके ग्रहों के स्थंभन (स्थिर करना) डराना, अंधा करना, जलाना, भेदना, बांधना, गर्दन भंग करना, अंग छेदन करना, मारना तथा दूरी करन करे । हाः स्यान्निरोधं शून्यं स्वरो द्वितीय श्चतुर्थ षष्टौच, औंकारों बिन्दु युतो विसर्जनीयश्च पंच कला ॥ ५३ ॥ ॐ कूट पिंड पंच स्वर युत कूटं पंचकं सं निरोध, दुष्ट ग्रहां स्तथा दिव स्तंभटा च स्तंभमंत्र इति फट घे घे ॥ ५४ ॥ हां के बाद के आं क्रों क्षीं हकार को दूसरी, चौथी, छड्डी, चौदहवीं और सोलहवी को बिन्दु सहित अर्थात् ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः से विसर्जन करे। ॐ के बाद कूट पिंड (दम्यू) कूटाक्षर (क्षकार) को पांचो स्वरों सहित अर्थात् क्षां क्षीं क्षं क्ष क्ष और ज्वालामालिनी देवी के पांच बाण (ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं) के पीछे दुष्ट ग्रह के बाद दो बार स्तंभय स्तंभय लगाकर दो स्तंभ मंत्र अर्थात् ठ: ठ: लगाये फिर फट् फट् घे घे लगावे । @ちたらどちから ५६९ PoK 595959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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