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SSIOTSTOTSD5215105 विद्यानुशासन VS1015105IOUS00510151
प्रणवोहि द्वितयं हेतु रिनो सौ लक्ष जाए संहितः
मंत्रो भवेदग्रहादेश वेशाद्यारिवल कर्मकर: ॐ नमो दस्व पुष्पे रुद्राय हर हर रक्ष मां हुं फट ठः ठः ॥ निम्नलिखित प्रणयादि मंत्र एक लाख जप से सिद्ध होता है। यह यभी ग्रहों को जगाकर सब कार्य करता है।
॥४५॥
आविष्ट शिरोनीते तजतेरकं तुरगरिपु कुसुमे,
आयाति मंत्रिणो वशमभिमतभि स ग्रहे: कुरुते " ||४६॥ इस मंत्र को तुरंग रिपु (कनेर) के पुष्यों पर जप कर जगाये हुये ग्रह वाले पुरुष के सिर पर डालने से वह ग्रह मंत्री के वश में हो जाता है और उसकी इच्छानुसार सभी संग्रह करने के कार्य को करता
इत्थं ग्रह निग्रहणे मंत्रा: कथिताः प्रसिद्ध शक्तिः
कथ्यते स्तंभदौ मंत्राः पिंड प्रधानाश्च युक्ताः ॥४७॥ इसप्रकार यह ग्रहों के निग्रह करने वाले मंत्र प्रसिद्ध-प्रसिद्ध योगों सहित योगी द्वारा कहे गये हैं। अब ग्रहों के स्तंभन आदि में पिंड प्रधान मंत्र कहे जाते हैं।
सकली करणेन बिना मंत्री स्तंभादिनिग्रह विधाने,
असमर्थै स्तनादौ सकली करणं प्रवक्ष्यामि ॥७॥ मंत्री भूतानि स्तंभन आदि ग्रहों के निग्रह के विधान में सकली करण अर्थात् आत्मरक्षा किये बिना सफल नहीं हो सकता है अतःएव पहले मैं सकली करण क्रिया के विधान को कहूँगा
यद्वन पंजर युतं सकली करणं पुरा समुद्दिष्ट, तेनात्रापि विदध्यादुधः सन्नात्मना रक्षा।
॥४८॥ जो पीछे तीसरे समुच्छेद में यजमयी परकोटे युक्त सकलीकरण की क्रिया कही गयी है। पंडित पुरुष उसी से यहाँ भी अपनी रक्षा करे।
मंत्री बली भिमत्वा पात्रं मुक्ता ग्रहः प्रायाति यदि,
तत्राप्य दिशा बंयं कुयात् इच्छं सनापैति ॥४९॥ यदि मंको बलि जानकर कोई ग्रह उस ग्रह से पीडित प्राणी से छूटकर आवे तो दिशा बंधन करने से यह दूर हो जाता है।
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