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SSIOISTRISCISSISIOTS विधानुशासन ISISTSISISISISTRISODE
ॐनमो भगवते चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय शंशाक शंरव गोक्षीर हार निहार धवल गात्राय धाति कर्म निर्मूलो छेदन कराता जाति जस मरण विलाशलारा संसार मांतो रोन्मूलन कराय अचिंत्य बल पराक्रमाय अप्रतिहतशासनाय त्रैलोक्य वंशकराय सर्व सत्यहितकराय भव्य लोकवंश कराय सुरासुर उपगेन्द्र मणि मुकुट कोटि धष्टित पाद पीठाठ त्रैलोक्य नाथाय देवादि देवाय अष्टादश दोष रहिताय, धर्मचकाधीश्वराय, सर्व विद्या परमेश्वराय त्वत्पाद, पंकाजाश्रय निवेशिनी देवी शाशनदेवते, त्रिभुवन संक्षोभणि, लोक्य संहार कारिणि स्थावर जंगम कत्रिम विषम विष संहार कारिणी, साभिचार का पहारिणी, पर विद्या छेदिनी, पर मंत्र प्रनाशिनी,अष्टमहानागकुलोचाटनि,कालदष्टमृतकोच्छापिनि सर्वरोगापनोदिनि, ब्रह्मा विष्णुरूद्रचंद्रादित्यग्रहनक्षत्रतारकोत्पात्मरणभयपीडाप्रमर्दिनि,त्रिलोक्य महिते भव्य लोकहितंकरे विश्व लोक वशं करि महा भैरवि भैरव रूप धारिणि, भीमे भीम रूप धारिणि सिद्धे प्रसिद्ध विद्याधर यक्ष राक्षस गरूड़ गंधर्व किन्नर किं पुरूष देत्योरगें द्रामर पूजिते ज्याला माला करालित दिगंतराले महा महिषवाहने, त्रिशूलचक कष पाष शरासन फलवर प्रदान विराजमान षोडशार्द्ध भुजे रवेटक कृपाण हस्ते देवी ज्वाला मालिनी एहि-एहि संसार प्रमर्दनि,एहि-एहि महा महिष वाहने, एहि-एहि कटक कटिसूत्र कुंडला भरण भूषिते, एहि-एहि धन स्तनि, किंकिनी नुपुर नादे एहि एहि महा महिष मेखला कटि सूत्रे, एहि-एहि गरूड गंधर्व देवासुर समिति पूजितपादपंकजे,एहि-एहि भव्य जन संक्षिणी, एहि-एहिमहादुष्ट प्रमादिनी, एहि-एहि मम गृहा कर्षिणि, एहि-एहि महानुबंधिनि एहि-एहि ग्रहानुछेदिनि, एहि-एहि ग्रह काल मुरिव एहि-एहि ग्रहों चाटिनी एहि-एहि ग्रह मारिणि, एहि-एहि मोहिनी स्तंभिनी समुद्रधारिणि, एहि-एहि धुन-धुन कंप-कंप कंपावरा मंडल मध्ये प्रवेशय प्रवेशव स्तंभय-स्तंभय हां ह्रीं हूँ हौं है: आह्याननं जलंगन्ह-गृह गंधंगह-गृह , अक्षतं गृह-गृह, पुष्पं गन्ह-गृह , चरु गन्ह गृह , दीपं गन्ह-गृह, धूपं गन्ह-गृह, फलं गृह-गुन्ह, महा अर्ध गृह-गन्ह. आवेशं गृह-गृन्ह महादेवी ज्यालामालिनी पर्वत वासिनी पाताल वासिनी शुभस्थान निवासिनी नगर निवासिनी आगच्छ-आगच्छ। ब्रह्मा विष्णु रूद्रद्रादित्य ग्रहान् आकर्षय आकर्षय देवग्रहान आकर्षय-आकर्षय,नागगृहान् आकर्षयआकर्षय, यक्ष ग्रहान् आकर्षा-आकर्षय गंधर्व ग्रहान् आकर्षय-आकर्षय, ब्रह्मा राक्षस ग्रहान् आकर्षय-आकर्षटा, भूत ग्रहान् आकर्षय-आकर्षय, व्यंतर ग्रहान् आकर्षय-आकर्षय, शतकोटि देव ग्रहान् आकर्षय-आकर्षय, सहस्त्र
कोटि पिशाच राजान आकर्षय-आकर्षया,कंपा-कंपटा मृत्यो रक्षा-रक्षय ज्वरं CATIOTECTEDISCICIACID५६५ PACKADISCISCAPISODE