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दूसरे कोनों में होने पर धन का नाश हो, तीसरे में धन की प्राप्ति हो, चौथे में भाई-भाई में विद्रोह हो, पांचवें में मन में चिन्ता हो और छठे कोने में होने से सह कुछ नष्ट हो। मंत्री इसप्रकार इन उपायों से विचार किया हुआ मंत्र ही शिष्य को सिद्ध करने के लिये देवें।
९. ऋणधन शोधन चक्र - (मंत्र सा. सा. वि. )
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प्रथम विधि - सात तिरक्षी और बारह सीधी रेखायें लिखकर एक छयासठ कोठों का यंत्र बनावे। इसको ऊपर की पंक्ति में कम से चौदह सत्ताईस, दो, बारह, पन्द्रह, चार, तीन, पांच, आठ और नौ के अंक लिखें। दूसरी पंक्ति में आदि के पांच दीर्घ स्वर छोड़कर शेष स्वर लिखें। तीसरी पंक्ति में 'क' से लगाकर 'ट' तक के अक्षर, चौथी में 'ठ' से लगाकर 'फ' तक के अक्षर और पांचवीं पंक्ति में व से लगाकर 'ह' तक के अक्षर लिखें। इसके पश्चात् अंतिम अर्थात् छट्ठी पंक्ति में दश, सात, चार, आठ, तीन, सात, पांच, चार, छ और तीन के अंकों को लिखकर जोड़ लेवें। दीर्घ स्वरों के स्थान में हस्व स्वरों के ही अंक लेवें। फिर इस जोड़ को आठ से भाग देकर शेष अंक को पृथक रख लेखें । यह मंत्र राशि है। नाम के वर्गों में भी यही विधि करें, किन्तु नाम में नीचे के अंक लेना चाहिये। इसका शेष नाम राशि कहलाता है। इनमें से अधिक राशि ऋणी और न्यून राशि धनी कहलाती है। मंत्र ऋणी अर्थात अधिक शेषवाला होतो ग्रहण कर लेना चाहिये। अन्यथा छोड देना चाहिये। द्वितीय विधि:- नाम के आदि अक्षर से लगाकर मंत्र के आदि अक्षर तक के अंक जरादि मातृका वर्णों को गिनकर उनको तीन से गुणा और सात से भाग दे, इसका शेष नाम राशि कहलाता है। इसीप्रकार मंत्र के आदि अक्षर से लगाकर नाम के आदि अक्षर तक के अकारादि मातृका वर्णों को गिनकर उनको तीन से गुणा और सात से भागदे।इसका शेष मंत्र राशि कहलाता है। इसमें भी ऊपर के अनुसार अधिक वाले को ऋणी और कम शेष वाले को धनी समझना चाहिये। तृतीय विधि - मंत्र के स्वर और व्यञ्जनों को पृथक् पृथक् गिनकर उनको दो से गुणा दें। फिर उनमें पृथक् पृथक् गिने हुए साधक के नाम के स्वर और व्यञ्जनों की संख्या को जोड़ दें। इसको आठ भाग देने पर शेष अंक मंत्र राशि कहलाता है। इसीप्रकार साधक के नाम के स्वर और व्यंजनों को
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