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CSRISIOISIOSDISTRIK विशानुशासन 265050512055105CASI ६. अकड़म चक्र - ( मंत्र. सा. सा. वि.) एक द्वादश दल कमल बनाकर उसमें नपुंसक वर्णों को (ऋऋ लु ल) को छोड़कर पूर्वोक्त वर्णों को लिखें जो इसप्रकार है। चक्र में भी नाम को प्रथम अक्षर से आरंभ करके मंत्र के प्रथम अक्षर तक क्रमशः सिद्ध, साध्य, सुसिद्ध और शत्रु को गिने।सिद्ध समय पाकर सिद्ध होता है, साध्य जप
और होमसे सिद्ध होता है। सुसिद्ध आरम्भकरते ही सिद्ध हो जाता है। और शत्रु साधक को खाजाता है। नाम से एक पाँच और नौंवें कोष्ठक के वर्ण सिद्ध, दौ-छ: और दसवें कोष्ठकों के साध्य, तीनसात और ग्यारहवें कोष्ठकों के सुसिद्ध, और चार-आठ तथा बारहवें कोष्ठकों के वर्ण शत्रु होते हैं। इसी क्रम से इसमें बारह भेद बनाकर इसका फल भी अकथह चक्र के अनुसार जानना चाहिये। अकडम चक्र
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७. अ उस्ल चक्र - ( मंत्र. सा. सा. वि.) पूर्वोक्त सभी वणों को चार कोठों में इसप्रकार लिखें ।इस यंत्र के नाम के अक्षर के कोष्ठक से पूर्वोक्त क्रम के अनुसार सिद्ध, साध्य, सुसिद्ध और शत्रु जानना चाहिये।
८. षट्कोण चक्र (मंत्र. सा. सा. वि.)। एक षट्कोण चक्र बनाकर उसके कोनों में असे लगाकर ह तक के नपुंसक वर्ण ( ऋऋल ल) रहित वर्णों को लिखें । संलग्न यंत्र में नाम के अक्षर के कोनों से लगाकर यंत्र के अक्षरों का निम्न प्रकार से शोधन करें। यदि नाम वाले कोष्टक में ही मंत्र का अक्षर होतो सम्पत्ति की प्राप्ति हो। उससे