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________________ CASIOSSESIRIDIO15 विधानुशासन ASSISTRISORTERSTOISS अविष्टस्यो परितन्मंत्र: सिद्धार्थ ताऽनेनाश्रु संक्रामो दग्रहमभिमंत्र मन्यं मंत्रीनरः तस्मात् ॥३७॥ मंत्री इस मंत्र से अभिमंत्रित सफेद सरसों के दानों को यदि उत्तेजित ग्रह से पीड़ित प्राणी को मारे 'तो ग्रह तुरन्तही भाग जाते हैं। षट्कोण भवन मध्येशून्य पिंड समंत्र, कंलिरियत्या कोष्ट मध्ये तुरं लं बूज तदन्तरे ॥३८॥ क्रोंकार विलिरवे चाग्रे वायु नाच त्रिः प्रवेष्टोत्, पृथ्वीमंडल मप्यायों दद्यात्तत् पुरतः सुधी: ॥३९॥ तस्याने स्थापोन्मंत्री गहितं ताडोत् पुनः, माला मंत्रेण संयति ग्रह शक्योपि शीयतः ॥४०॥ मूलमंत्रं प्रसाध्यैतं सहश्र भानु संख्याक: सिद्धिमेति संतुष्ट स्सन् सदश्य प्रदोभवेत् ॥४१॥ __ मूल मंत्रोद्धारः ॐणमोमाणिभद्राय रोमहर्षाणाय पहि-एहि शीघं-शीघ्र आवेशया आवेशयरांआं कों ही गगन गमनाय स्वाहा॥ मूल मंत्रोयं एक छ कोणे याले भवन के अंदर मंत्र सहित हम्ल्यूं बीज लिखकर कोष्ठ के कोणों में रं बीज और अंतराल में लं बीज लिखे। कोणों के किनारे पर क्रों लिखकर तीन बार यः बीज वाले वायुमण्डल से वेष्टित करे तथा अन्त में पृथ्वी मण्डल बनावे । ___ मंत्री इसके आगे ग्रह से पकडे हुए प्राणी को खड़ा करे और नीचे लिखे माला मंत्र का भी जाप करे और यही को ताड़ना करे। इस मंत्र यन्त्र से ग्रह को भगाने में मंत्री शीघ्र ही समर्थ होता है।इस मूलमंत्र का बारह हजार जप कर सिद्ध करे ।देवता के संतुष्ट होने पर यह मंत्र सब आवश्यक वस्तुओं को देता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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