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________________ SSIOS9151015015015 विद्यास्यासन 95015015050SDIST ॐ नमश्चंडालि चामुंडे चंडा भाषाश चलि-चलि गच्छ-गच्छ धूप फलेन शेषु नमो महाकालाटा ठः ठः ॥ अभिमंत्रितः प्रलिप्तो मंत्रेणा नेन सपदि तिलक कल्कः, स च जनयति ग्रहाणां सर्वेषामपि हन प्रसनां ॥३२॥ उपरोक्त मंत्र से तिलक पुष्प के कल्क को अभिमंत्रित करके लेप करने से सभी ग्रहों को महान कष्ट होता है। आदीवरः स बिन्दु : द्वा वपि पूर्वोक्त मान्म स्वे शब्दो, पश्चात् द्वय मडन्तेतस्नि सहश्र जपेन सं सिद्ध ॥३३॥ आदि में बिन्दु सहित ॐ कार और इसके पश्चात् मान (अमल) और मरव (विमल) शब्द तथा अन्त में दो ठः ठः लिखकर तीन हजार जाप करके सिद्ध करे। ॐ अमले विमले ठः ठः । अयं मा विष्ट:श्रवणे प्रजाप माणो भवान ग्रहान, मंत्रः निः शेषान् निर्मूलं विनि गृहान्तिक्षणे नैव ॥३४॥ इस मंत्र का जाप करने अथवा कान में पढने से सब ग्रह एक क्षण में ही नष्ट हो जाते हैं। मंत्रयमो विदारी कुरू कुरू हुं फट श्रुती विहित जापः, विरचय धूल मुद्रामा विष्टस्य ग्रहं हरति ॥३५॥ ॐ विदारी कुरु-कुरु हुं फट आदि शास्त्रीय मंत्र का शूल मुद्रा बनाकर जपने से आवेश हुए यह नष्ट हो जाता है। ॐ रखडगै रावणाय विद्मये चंडेश्वर भाशश धीमहे तन्नो देवः प्रचोदयात्॥ सलिलस्य खडग रावण मंत्रोऽतर्लक्ष जाप सिद्धोट, आविष्टानां जप्तः सर्व ग्रह मोक्षणं कुरुते ॥३६॥ यह जल का खडगै रावण मंत्र है इसकी सिद्धि एक लाख जप करने से होती है। इस मंत्र को जपने से सभी आवेश हुए यह छूट जाते हैं। ॐ नमः चडासि भाषाशं नम श्चंडालंकृत जटाय गहान-गृहान मोहय मोहय आवेशय - आवेशय संक्रामय-संक्रामय लघु रूद्रा ज्ञापयति हुं फट ठः ठः ॥ S5DISTRICISTRISTOTSIRIS५६० P15015TOISRISISTRISRAEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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