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________________ こちとらどらですで विधानुशासन गंधर्वो गायति सुस्वरेण स ब्रहमा राक्षसः संध्यायां, जपति चे वेदान् पठति स्त्रीष्वनुरक्तः स गर्वश्व गंधर्व अच्छे स्वर से गाता है, ब्रह्मा राक्षस संध्या के समय जाप करता है और वेदों को पढता तथा स्त्रियों में अनुरक्त रहता है और बड़ा घमण्डी होता है। रोदिति हाहाकारै विर्दधात्यति रौद्रमैव कर्म सदा, तनुते स्फुटाह बासं हसति पुनः कहकह ध्वनि ना 59 || 61 || कोसा वास्ते मंत्रीयो मोचयति स्व मंत्र शक्तयामां, कृति सातयं स विकार विजृंभनं कुरुते 11811 अब यह कभी तो हाहा करके रोता है, कभी रौद्र कर्म भी करता है। सदा शरीर से अट्टाहास करके हंसती है। फिर कहकह की ध्वनि करती है। कभीकभी वह कर से कहता है कि ऐसा कौन मंत्र शास्त्री है जो मुझे अपने मंत्र की शक्ति से बलि देकर छुड़ावे फिर विकार से जंभाई लेता है। ॥८॥ नेत्रे विस्फारयति च गाति जंभति घुनोभि हसति च भूतः, मूर्छति रोदति धावति बहु भोजी व्यंतर स्तथा भुवि पतति ॥ १० ॥ . भूत नेत्र फाड़ फाड़ कर देखता है और गाता है, जंभाई लेता है, ध्वनि के साथ हंसता है तथा व्यंतर मूर्च्छित होता है, रोता है, दौड़ता है, बहुत भोजन करता है और जमीन पर गिर पड़ता है । कृच्छ भवेत् शरीरं करतल हृदये क्षणानि दह्यन्ते, काल्या प्रपीडितस्य तु करालिकातन मुंक्तेऽन्नं दिव्य पुरुष गृहाणां लक्षण मेवं मया समुदिष्टं, दिव्य स्त्री गृह लक्षणम युना व्यावर्णयते श्रणुत ॥ ११ ॥ इसप्रकार दिव्य पुरुष ग्रहों के लक्षण कहे गये हैं । अब दिव्य स्त्री ग्रहों के लक्षण कहे जाते हैं वह सुनो। 950512x काली तथा कराली कंकाली काल राक्षसी जंधी, प्रेताशिनी च यक्षी वैताली क्षेत्रवासिनी ति नव ।। १२ ॥ काली, कराली, कंकाली, काल राक्षसी जंघी, प्रेताशिनी यक्षी, वैताली और क्षेत्रवासिनी यह नौ स्त्री ग्रह है। ॥ १३ ॥ PPP 1444 らららららですです
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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