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________________ SHIRIDIOTSIDEODISS विद्यानुशासन 9851015TOISTOTRICISCIEN अथ अष्टम समुदेश ।। श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥ अथ ग्रहाणं लक्ष्माणि मंत्र मंडलमौषधं शाकिन्य परमारोन्माद प्रतिकारं च वक्ष्याम्यहं अब ग्रहों के भेद, लक्षण, मंत्र,मंडल, औषधि, शाकिनी, अपस्मार और उन्माद को दूर करने का उपाय कहूंगा। अति हष्टमति विषाणं भवांतर मेह बैर संबधं, भीतं चान्य मनस्कं ग्रहाः प्रगृन्हति भुवि मनुज ॥२॥ रति कामाबलि कामानितुं कामा ग्रहाः प्रगृन्हति वैरेण हंतु कामा गन्हन्यवशेष कारणे शेषाः । ॥३॥ अत्यन्त प्रसन्न मन वाले दुखी मनवाले अथवा अन्य प्रतापी या डरपोक संसारी पुरुष को पूर्वजन्म के प्रेम अथाव बैर के संबंध से ग्रह पकड़ लेते हैं। तेपि ग्रहा द्विधास्यु ईिव्या दिव्य ग्रहप्रभाः देन, दिव्यावापि द्वेधा पुरुष सी गृह विभेदेन ॥४॥ वे ग्रह भी दो प्रकार के होते हैं- और दिव्य अदिव्य। उनमें से दिव्य ग्रहों के भी दो भेद होते हैं-पुरुष ग्रह और स्त्री ग्रह । देवो नागो यक्षो गंधवों ब्रह्मा राक्षसश्चैव, भूतोव्यंतरं नामेति सप्त पुरुष ग्रहाः प्रोक्ताः देवः सर्वत्र शुचिनागःशेते भनक्ति सर्वागंक्षीरं, पिवति च नित्यं यक्षो रोदिति हसति बहुधा देव,नाग,यक्ष,गंधर्य,ब्रह्मा राक्षस,भूत,व्यंतर यह सात पुरुष यह होते हैं। देव सदा पवित्र रहता है, नाग सोता है, सब अंगों को तोड़ डालता है और नित्य दूध पीता है, यक्ष रोता है और बहुत प्रकार से हंसता है। STORISTORICTDICTIRI5015५५४ PASTOTSPIRRIDICISCIRCISE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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