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SODOISTRICISITE विधानुशEVE CISCERTISEMESTER
काली ग्रह से पकड़े हुए प्राणी का शरीर दुखी अर्थात् दुबला हो जाता है, हृदय और नेत्रों में जलन हो जाती है-कराली माह से पीड़ित प्राणी अन्न नहीं खाता है।
मुखमा पांडुरमगं कशं च कंकालिका गृहीतस्य भ्रमति,
निशि वदति कौलिक मयाद्व हासं करोति काल राक्ष स्यातः ॥१४ ।। कंकाली से पकडे हुए का मुख तथा अंग पीला पड़ जाता है। कंकाली ग्रह से पकडा हुआ रात्रि में घूमता है और काल राक्षसी दुखी प्राणी ऊंची ऊंची बातें करता है और अट्टाहास करके हंसता
जंघी गृहीत मनुजो मूच्छिति रोदति कृशं शरीरं स्यात्,
प्रेताशिनी ग्रहीताश्चकितौ वा भीकर प्वनि ना ॥१५॥ जंघी से ग्रहण किया हुआ प्राणी मूर्छित होता है, रोता है और उसका शरीर दुबला हो जाता है- प्रेताशिनी से वाहण किया हुआ भयंकर ध्वनि से शब्द करता हुआ चकित हो जाता है।
उत्तिष्ठति दष्टोष्टः स एव वीर ग्रहो बुधैःप्रोक्तः मास,
द्वितयात्परतः तस्य चिकित्सा न लोके स्ति ॥१६॥ ऐसा व्यक्ति होंठ चबा-चबा कर उठता है- पंडितों ने इसको वीर ग्रह कहा है। इसकी चिकित्सा दो महिने पीछे संसार में नहीं हो सकती है।
भोक्तुं न ददाति न च पियांगणा संगम तथा
कतु स्वयमेवं प्रच्छन्नां जीयति सहतेन वट यक्षी ॥१७॥ वट यक्षी से पीड़ित पुरुष न तो खाता है और न अपनी प्रिय स्त्री से संगम ही करता है- यक्षी गुप्त रूप से उसके साथ रहती है।
शुष्यति मुरवं कशं स्थात् गात्रं वैतालिका गृहीतस्था,
संक्षेत्र वासिनी पीडितो नरी नत्ति जागति ॥१८॥ वैतालिका से पकड़े हुए का मुख सूख जाता है और उसका शरीर कृश हो जाता है। क्षेत्रवासिनी यह से पीड़ित प्राणी नाचता है और जागता रहता है।
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