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CTRICISCECTRICT विद्यासुशासन ASIOTICISCIRCISCIEN
शिरोरुहान पाद नरयान कलगिंक निशा समं, निंब पत्राणि दंताश्च दंतिनः सर्ष पैः सह
॥९॥
अव चूण्य समांशेन दद्भात् धूपं शिशो स्तदा, विल्व निंबी पलाशश्च कपित्थः पिप्पल स्तथा
॥१०॥
एतेषां पल्लवैः सिद्धैः क्याधितै रुष्ण सज्जलैः, पंच पल्लव नीरेण कुांबाला भिषेचनं
॥११॥
अनेन बलिना तुष्टा सा दयीतं विमुंचति, चैत्यालये ब्रह्म देवमंबिकां च यथा विधि
॥१२॥
संपूज्य शांतिं सर्वेषां ग्रहाणां लभते नरः मांत्रिकं वस्त्र दानारिर्चरो भक्ति पूर्वक
॥१३॥
न सिद्धयति बिनानेन कुत्रापि गृह मोक्षणं,
प्राण प्रदायिनी लोके का वा स्यात् प्रत्युपकिया ॐ नमो कुटिलिनी एहि-एहि बलिं गह-गह मुंघ-मुंघ बालकं स्वाहा ||
॥१४॥
॥ इति बलि विसर्जन मन्त्रः ॥ सोलहवें वर्ष में बालक को कुटलिनी नाम की देवी पकड़ती है। उस समय बालक नेत्र सहित होने पर भी सामने खडे हुए पुरुष को नहीं देख सकता है। उसकी आँखे बहती रहती हैं, वह दुबला होकर सर्वदा लंबे लंबे ऊँचे श्वास लेता रहता है, उसको भोजन करते-करते ही यमन हो जाती है। फिर यह निश्चेष्ट होकर मूर्छित हो जाता है। इस भारी विकार का प्रतिकार ही नहीं है तब भी यदि मन में विश्वास हो तो उपाय कहा जाता है- तीन रंग के भात, उड़द की दाल, पत, खीर, भुने हुये तिलों की पिष्टी और लोभिये सहित एक सब तरफ से अच्छा तिकोने बर्तन में पवित्र सफेद व लाल दो कपड़ों सहित एक धार तोले सोने की यक्षिणी की प्रतिमा को जो चंदन, फूलमाला, तांबूल आदि से पूजित हो बलि पर रखकर अग्नि में घृत की एक सौ आठ आहुतियाँ देकर, घर को पूर्व दिशा के भाग में रात के अन्त होने पर, तिराहे पर गाँव के मध्य भाग में सूर्योदय के समय मंत्र पूर्वक यालक पर उतारा करके रथ्य देवे ,और असगंध और महुवे के पत्तों को पीसकर बालक के शरीर
SASSISCIRCISISTERIS05/५४२ PISTORS2015TOISIOSDISIOISS