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________________ 015015015251015125 विधानुशासन PHOT505250STRIES पर लेप करे। सर के बाल, पांवो के नाखून, कलिंगक (इन्द्रजो), निशा(हल्दी), दंतिनः (हाथी) के दांत सरसों सहित सबको बराबर लेकर चूर्ण बनाकर बालक के शरीर को धूप देवे, तथा बिल्व नीम के पत्ते , पल्शा, कैथ, पीपल अर्थात् पांचो पत्तों के पकाये हुए जल से अर्थात् इन पत्तों के क्वाथ किये हुए गरम जल से बालक को स्नान करावे । इस बलिसे संतुष्ट होकर वह कुटिलिनी देवी बालक को छोड़ देती है और चैत्यालय में ब्रह्मा देव और अंबिका देवी का विधि पूर्वक पूजन बारे, इस पूजन शुरू से TEE Silaदिको प्राप्त होता है फिर भक्ति पूर्वक मंत्री की भी वस्त्र व दानादि से पूजा करे। क्योंकि बिना मंत्री को संतुष्ट किये ग्रह बालक को नहीं छोड़ते हैं। वह कार्य सिद्ध नहीं होता, ग्रह से छुटकारा पाने का प्रश्न नहीं उठता भला प्राण देने वाले का क्या बदला दिया जा सकता है। ॥ इति षोडशो वत्सरः ॥ पूज्य पाद मिदं लिख्य शिशोर्बलि विधानकं, शांतिकं पौष्टिकं चैव कुर्यात् कम समन्वितं || यह बालक की बलि का विधान पूज्यपाद स्वामी के अनुसार लिखा गया है। इसप्रकार क्रम से शांतिक और पौष्टिक कर्म करता है। इति प्रकारांतर बाल गृह चिकित्सिकं समाप्त इसप्रकार दूसरे प्रकार के अनुसार बाल गृह चिकित्सा समाप्त हुई। अथ रावण मत बाल गृह चिकित्सा अथास्य प्रथमे दिवसे मासे वर्षे च बालकं, गृह्णाति नंदना नाम माता तया गृहीतस्य प्रथमं जायते ज्वरः ॥ काकरवं करोति-गलं शुष्यति-स्नन्यं न गन्हाति, दुर्बलो भवति हदयति अतिसारयति ।। हस्त पादौ संकोचयति उद्धवं निरीक्ष्यते, एवमादि चिन्हानि भवन्ति | बालक को पहले दिन, मास और वर्ष में नंदा नाम की माता पकड़ती है। उसके पकड़ने पर बालक को पहले बुखार होता है। वह कौवे के समान शब्द करता है, उसका गला सूख जाता है, दूध नहीं पीता है, दुबला हो जाता है, उल्टी करता है। उसको दस्त होने लगता है, वह हाथ पैरों को सिकोड़ता है, ऊपर की तरफ देखता है इत्यादि इसप्रकार के चिन्ह होते हैं। CISIOSSETTOSCISSIST05/५४३ PIROIDIOTSIDROISTRIOTI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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