SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 547
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 95969695952 विधानुशासन 95959 らんらん सोने की प्रतिमा को रखकर चंदन, धूप, फूलमाला और पानी आदि से पूजकर उसकी मंत्र सहित घृत और अमंसा (जल), अंधसा (भात) की दस आहुतियाँ देवे। भेड़ के सींग, दांत, पांव के नाखून और बाल बराबर-बराबर लेकर उसके चूर्ण से बालक के शरीर पर मंत्रपूर्वक लेप करें। पाँचों पत्तों के पकाये हुए जल से बालक को स्नान करावे तयां पहले के समान ब्रह्मा और अंबिका का पूजन करे | बलि कराने वाले को भी वस्त्र आदि से संतुष्ट करे । स्पृशेत् कुटिलिनी नाम षोडशेवत्सरेऽर्भकं, सचक्षुर श्रवत्सोऽपिन पश्यति पुरस्थितं कृशोभूत्वा श्वसित्यूद्ध निश्वसित्यपि सर्वदा, वमन्नाहार मादत्ते निश्चेष्टो मूर्च्छितो भवेत् विकारस्यास्य महतः प्रतिकारो न विद्यते, अस्त्वीति यदि सं विश्व मनस्तहिंगद्यते त्रिवर्ण मोदनं माष सूपं सर्पिश्च पाटयसं पिष्टं भृष्ट तिलानां च राजमाष समन्वितं एतद्बहु विधिं सर्व त्रिकोणे पात्र भाजने, विन्यस्य विमले शुभे रक्त वस्त्र युगाऽन्वितां प्रतिमामऽपि सौ वर्णी पलेन परिमापितां, पूर्वोक्त गये पुष्पा स्तांबूलेनान्विते बलौ जुहुयात्सर्पिषा यन्हाचष्टोतर शताहुति, निशांत पूर्व दिग्भागे त्रिपथे ग्राम मध्यगे ॥ १ ॥ ॥२॥ ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ ॥५॥ || || || 19 || सूर्यस्योदये बेलायां बलिं दक्षात्समंत्रकं, पत्राणि पिष्टाततं लिंपेद श्वगंधिमधु कयो CROSSPSP59595 ५४१ 25969596959595 ॥ ८ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy