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________________ CI501505CISISTERIS विधानुशासन 950505RISRISTION देवे। इसके पश्चात् सफेद सरसों और नीम के सूखे पत्तों की धूप बालक को देवे। फिर बालक को पाँचों पेड़ों के पत्तों के पकाये हुए जल की धारा से स्नान कराये। इसप्रकार बलि विधान करने से वाहिनी देवी बालक को छोड़ देती है। इसके पश्चात चैत्यालय में पहले के समान ब्रह्मा देय और अंबिका देवी का पूजन सम्पूर्ण द्रव्यों से करे अन्यथा देवी नहीं छोड़ती। अंत में मंत्री का भी अनेक प्रकार की वस्तुओं से सम्मान करके संतुष्ट करे क्योंकि प्राण दान करने यालों का लोक में बदला तो चुकाया नहीं जा सकता। ॥ इति द्वादशो वत्सरः॥ गृह्णाति टाक्षिणी नाम वत्सरे तं त्रयोदशे, विगृहित स्तया सोपि ज्वरेण परितप्यते ॥१॥ शूली भवति वातेन रहित्यु भय तोलुवनं, विकार स्थास्य महतः शिशोः प्रति विधीयते ॥२॥ बालकस्थ तनुं स लिंपेदाज्येन भूयसा, बीहि अन्नं पायसं सपि राजमाषाच लटकान् ॥३॥ उदलावण पिण्याक सहित ताम्र निर्मितो, आदाय भाजने सयंबलिं वस्तु विधानेत : ॥४॥ पलेन रचितां हम प्रतिमां युग्म वाससा, संपूजस्य गंध पुष्पायै बलेरू परि परि भक्तित: ॥५॥ दधि भक्तन लाजैश्व पायसेन च सर्पिषा अग्राऽवनेन मंत्रेण जुहयाद्याहुतिर्दशः ॥६॥ सद्मनो दिशि पूर्वस्यां मध्यान्हें पि चतुष्पथे, बलिं दद्यात् ततो मंत्री मंत्रेणाऽनेन भविततः मेष दंता हि निमोंक सर्षपे धीही गुंजकै. धूपि तस्य शिशो स्नानं पंच पल्लव वारिणा ॥८॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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