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________________ COOTERASICISIPISODE विधानुशासन IPSTOTARISTOISSISTS अथः अंशक परीक्षा परिज्ञायांशकं पूर्व साध्य साधक योरपि मंत्रं निवेदटोत प्राज्ञोव्यर्थ तत्फल मन्यथा ॥१८॥ बुद्धिमान साध्य-साधक के अंशों को भली प्रकार जानकर ही मंत्र को आरंभ करे अन्यथा इसका 4. यर्थ लाता है। साध्य साधकयो नामानुस्वारं व्यंजनं स्वरं प्रथक कत्वा क्रमात्स्थाप्य मूधि: परिभागतः ॥१९॥ साध्य और साधक के नाम के अनुसार व्यंजनों और स्वरों को पृथक पृथक करके क्रम से ऊपर नीचे के विभाग से रखो। साध्य नामाक्षरं गण्यं साधकाय वर्णतः ऋऋ ल ल परित्यज्य कुर्यात् तेद वेदभाजितं ॥२०॥ ऋऋ ल ल को छोड़कर साध्य के नाम के अक्षरों को साधक नाम के अक्षरों से जोड़े फिर उसको चार से भाग दे। लब्ध आयो गण नाशेषा स्तंचायं स्थापयेत क्रमाद्रीमान् एकद्धि त्रि चतुर्ण सिद्धं साध्यं सुसिद्धमरिं ॥२१॥ बुद्धिमान उस भागफल को क्रम से एक स्थान पर रख लेवे उनमें से शेष १ बचे तो सिद्ध दो साध्य तीन सुसिद्ध और ४ बचे तो शत्रु कहलाते हैं। सिद्ध सुसिद्धं ग्राह्य शत्रं साध्यं च वर्जयेत प्राज्ञः सिद्ध सुसिद्धे सफलं विफलं साध्योपरिनाशाटा ||२२॥ सिद्ध और सुसिद्ध को ग्रहण कर लेना चाहिये किन्तु शत्रु और साध्य को छोड़ देना चाहिये, क्योंकि सिद्ध और सुसिद्ध सफल होते हैं और साध्य निष्फल होते हैं और शत्रु नाश करते हैं। फलदं कतिपयदिवसैः सिद्धं चे त्साध्य मपि दिनैं बहुभिः झटिति फलदं सुसिद्धं प्राणार्थ विनाशन: शनः ॥२३॥ सिद्ध योड़े दिन में फल देता है साध्य अधिक दिनों में फल देता है। सुसिद्ध शीघ्र फल देता है और शत्रु प्राण और अर्थ का घात करता है। SASRISRTERISTRI50SOTE ७ 250SCISSISTRICISTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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