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SSIOISCISIOI50150 विधानुशासन DISTRI50150505CSI जिन मंत्रों के आरंभ में अथ हो उसको सिद्धादि जिसके आरंभ में उँ ह्रीं हो उसको सुसिद्धादि कहते हैं। वह शुभ होते हैं उनको सिद्ध कर लेये, तथा जिनके आदि में विद्वेषि पद हो उनको साध्यादि कहते हैं उनको सिद्ध न करे।
मंत्र सिद्ध ससिद्धादि पाठत्सिद्धादि कोजपात्
साध्यादि जैपि होमायैरप्यादिहांति साधके । ॥१५॥ सुसिद्धादि व पात मात्र से सिद्धादि जस से और साध्यादि जप और होम आदि से साधक को फल देते हैं। अरिमंत्र साधक का वध करते हैं।
सिद्धादि नाममध्ये ये मंत्राद्यक्षरान्विता याः
सिद्धादीन पुनरपि कृत्वैवं योगमुपगच्छेत ॥ १६ ॥ सिद्धादि नाम के अन्दर जो मंत्र के आदि के वर्ण होते हैं सिद्ध किये जाने वाले मंत्र में उनको लगाने से सिद्धि शीघ्र होती है।
न दुष्ट वर्ण प्रायश्वेन मंत्रः सिद्धिं प्रयच्छति। इत्युक्तो वर्णयोगोन्न पेषां वण्यते मतं
॥१७॥ यदि मंत्र में दुष्ट वर्ण अधिक होतो सिद्ध नहीं देते वह वर्ण योग वर्णन किया गया अब दूसरा वर्णन आरंभ करते हैं।
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