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अथः राशि परीक्षा चतु स्त्रि त्रि द्वि द्विद्वगिषु वणों ष्वि शरा चय: एते राशि षु वर्णः स्यु नायमूउष्माक्षराण्यापि यत्र जराक्षरददि स्यात् तस्मादारभ्याराशय श्चत्वारः
॥९॥
रक्षक सेवक पोषक द्योतक तुल्याः पुनस्त स्ततो न्ये द्वेग
वर्णश्चतुष्पदेस्यै नरियादियेंषु भवंतिते वर्णाः ' सिद्धास्तेभ्य: साध्यास्ततः सिद्धा स्ततो रिपवः
॥१०॥ जिस राशि में पुरूष का अक्षर हो तो उससे आरंभ करके चार से पहले पहली राशि या रक्षक सेवक पोषक होती है इसके अतिरिक्त घातक उद्वेगी होती है। इन तीनों के भीतर यदि मंत्र के पद आवे तो वह सिद्ध होते हैं। उनको अवश्य सिद्ध कर लेना चाहिये। इसके अतिरिक्त अन्य शत्रु होते हैं।
मतांतरेणापि येला गुरू स्वार शोण शर्मणवेतिभदिताः लिपि वर्ण राशिषु ज्ञेया षष्टे शादी न्युयोजयेत्
1॥११॥ बेला गुरू स्वार शोण और शर्मा आदि के अक्षरों को भी इसी प्रकार राशी चक्र में देखकर जान लेना चाहिए।
एक पंच नव वंदु रक्षकाः दे च षष्ट दशमः सुसेयकाः
त्रीणि रूद्र सप्तगण पोषकाः द्वादशाष्ट चतुरस्तु घातकाः ॥१२॥ नाम राशि से प्रथम, पंचम, नवम मित्र और रक्षक होते हैं। दूसरी, छटी और दसवीं सेवक होते है तीसरी, सातवीं और ग्यारहवीं पोषक होती है- और चौयी, आठवीं, बारहवीं घातक होती है।
मंत्रिणं रक्ष्यते रक्षसे सेवो च्च ससेवक: मंत्रः स पोषको ज्ञेयो घातो त्स च यातकः
॥१३॥ जो मंत्री की रक्षा करे वह रक्षक जो सेवा करे वह सेवक, जो उसको पुष्टि करे वह पोषक और जो धात करे उसको घातक कहते हैं।
अथ मंत्रः सुसिद्धादिः सिद्धादि वाम तः शुभः मंत्रं विद्वेषि वर्णाचं साध्यादि वात् साधयेत्
॥१४॥
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