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________________ ST501512550151955 विधानुशासन 015105505504510151058 अश्विन मधा पू.फा स्वाति विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा मूल उ.षा. श्रवण घनिष्ठा शत उ.भा Inh | रेवती |१३|४|११|२१|२२|१२/२/३१२३/१|३१|११/२ १२३२ देव पर राक्षस देव र देवदेव समाक्षस भर भर देव मम देवाराक्षम देव क्ष राक्षाम पर भर देवारावास बालसभर भर देग) Ha at ए ऐ ओ क ख घ च छ जट डर धम ब भ म ये औ | गऊ |ज अठण आ | - मंत्री के नाम से नक्षत्र से यदि मंत्र का नक्षत्र १-१०-१९ हो तो जज्म दूसरा, ११-२० होतो संपत, ३-१२-२१ हो तो विपत्त, ४-१३-२२ हो तो क्षेम, ५-१४- २३ प्रत्यरि, ६-१५-५४ साधक, ७-१६२५ वध ९-१७-२६ मंत्री ९-१९-२७ परम मैत्रिक होता है। यदि मंत्र विपत्त प्रत्यरि वध होतो छोड दो मंत्र शत्रु अक्षर से आरंभ होतो शत्रु कहलाते हैं । मित्र अक्षर से आरंभ वाले मित्र कहलाते हैं। देव गण व मनुष्य गण मंत्र शुभ होते हैं। तया राक्षस गण मंत्र अशुभ फलदाता होते हैं। ॥मतांतरेणापि ॥ राज्य लोभोपकारय प्रारभ्यारि स्वरः, कुरूगोपाल कुक्कुटी प्रायात्कुल्लचित्युदितालिपि ॥६॥ दूसरे मत से यदि मंत्र शत्रु स्वर से आरंभ हो तो शत्रु होता है। अन्यथा राज्य लाभ व उपकार का करने वाला होता है। लिखने में कुरुगोपाल कुट्टी प्रायात कुल्लो आदि के अक्षरों को इस प्रकार लगा लेना चाहिये। नक्षत्रेषु क्रमाद्योज्यां स्वरांत्यौ रेवती गुजौ जन्म संपद्रिपेक्षेमं प्रत्यरिः साधको वधः ॥७ ॥ मैत्रं परं च जन्मा दीन्येतानि च पुनः पुनः मंत्री नाम नक्षेणमंत्राक्षरं पर्यतं योज्यं ॥८॥ उपरोक्त यंत्र के लिए नक्षत्रों में क्रम से रेवती तक स्वर तथा व्यंजनों को लगाने से मंत्र में जन्म संपत्ति विपत्ति कुशलता शत्रु की सिद्धि और वध मित्रता शत्रुता और जन्म आदि बार बार भलीप्रकार जाने जा सकते हैं। मंत्री का नाम और मंत्र के अक्षरों को इसी यंत्र से देखना चाहिये। CASTO151015015121525 ४४_PISODIOSDISTRISIOSDIS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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