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こらこらでお 15 विद्यानुशासन 969599
तीसरा अध्याय प्रारम्भ
अथ शेषाः प्रभाष्यंते परिभाषा विशेषतः कृत्स्नोपि मंत्र यंत्रातया थोतया अपेक्ष्यैव वर्तते
॥१॥
अब उन अवशिष्ट परिभाषाओं का विशेष रूप से वर्णन किया जाता है। जिनकी उपेक्षा से कोई भी मंत्र यंत्र नहीं कर सकता।
योगोपदेश दैवत सकली करणोपचार जपहोमात् दिक्कालादीन मंडल संज्ञांश्चवक्ष्ोत्र
॥ २ ॥
मक्षर
योगोपदेश देवता सकली करण उपचार जप होम दिशा और काल आदि तथा पृथ्वी आदि मंडल और शांति आदि संज्ञायें इस तीसरे परिच्छेद में कही जायेंगी ।
साधकारव्यादि मंत्रादि वर्णों तत्तारयोरपि
तद्ाश्योश्च क्षयोनुकूल्यं योगइति स्मृतः
॥ ३ ॥
प्रथम साधक के नाम और मंत्र के अक्षरों को नक्षत्र तारे और राशी को मिलाना चाहिये विरोध न होने पर समझ लेना चाहिये कि मंत्र सिद्ध हो जायेगा ।
द्वयैक त्रि चतुरेकैक द्वि संख्याः क्रमतः स्वराः अश्वावास्तारकाः स्मृताः रेवती स्या त्स्वरांतिमौ
॥ ४ ॥
एक द्वि द्वेक द्विद्वि चेक द्वित्र्यैकैटयैके के पैक द्वित्रि प्रमिताः स्यु वर्णाः पुष्याद तारा स्युः
॥ ५ ॥
अब प्रथम नक्षत्र क्रम से अक्षर गिनने का उपाय बतलाय जाता है। अश्विनि आदि नक्षत्रों में स्वर दो, एक, तीन, चार, एक-एक दो-एक और दो -दो के क्रम से हैं। अंत के दोनों स्वर रेवती में होते हैं। व्यंजनों का क्रम पुष्य आदि नक्षत्रों में दो-दो एक-दो एक दो तीन एक तीन एक एक एक दो एक दो और तीन है ।
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