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________________ जं अं लं STORISTR1501501505 विधानुशासन 9500500051055015 ठठ स्तम्भन बीज सकल, जैन ब्लें में विमल पिण्ड, आकर्षण ग्लौं ग्लौं स्तम्भन धि विसर्जन जूं हूं विद्वेषण ब्यूँ द्रावण चलन और चल ह्रां ह्रीं हं ह्रौं ह्रः शून्य ऐन्द्र बीज घे घे वध बीज द्रां द्रीं द्रावणबीज शब्द शून्य नमः शोधन, अर्चन पर, सिद्ध इनका का जाप करन चाहिये। आं ह्रां ह्रीं क्षी कों, क्ली द्रां द्रीं ब्यूँ , नौतत्व व्हः श्वीं यः वः स्वाहा सुधाक्षर क्षांक्षी क्षं क्षौ क्षः वां क्षे क्षै क्षो क्ष कूट पांच वज्र आठ हैं - वायूं, खy, झम्ल्यू, भल्यूं, सल्व्यू हy (घल्य) पिंडाक्षर १४हैं - वान्थ्यूं, खल्ब्यू, घल्यूं, छायू, इम्ल्यू, इम्ल्यूं, तम्ल्यूं, भल्ब्यू, म्म्ल्यू, एल्यू, सल्ब्यूँ हल्यूँ, क्षल्यूं। इत्याचे विद्यानुशासने मंत्र लक्षण विधि नाम इसप्रकार विद्यानुशासन ग्रंथ में मंत्र लक्षण नामक द्वितीय परिच्छेद पूर्ण हुआ। द्वितीय परिच्छेदः CASIRIDORIESICHEIRTICIR ४२ PASTOTRIOTECIRCTCRETS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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