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________________ CSCI5015015105105 विधानुशासन P1501501501510151075 शोभित हो, उसको धूप और फूल माला आदि से पूजकर पान का बीड़ा देकर सबके ऊपर रखें और बलि के सब शेष बाकी बचे हुवे अन्नों से अग्नि में इस मंत्र से अहाईस २८ आहूतियां पवित्र होकर दें। फिर पान देकर और जल के घड़े सहित बलि को मंत्रपूर्वक सूर्योदय के समय पूर्व दिशा में रखे, और भेड़ के दांत, सर्प, कांचली मोर के पाँवो के नाखून, सरसों ,प्याज और कुड़ा (कुरज) को बराबर लेकर उससे बालक के सारे शरीर पर धूप दें। बिल्य के पेड़ की जड़, पीपल और छीला की छाल को डालकर पकाये हुये जन से बालत को स्नान करायें । फिर बालक के शरीर पर चारों तरफ चंदन का लेप करें। इस विधि से सात दिन तक मंत्रपूर्वक घर के पूर्व दिशा के भाग में पवित्र लेकर बलि दे। तथा पहिले के समान ब्रह्मा और अंबिका की चैत्यालय में पूजन करें। इसके पश्चात पहिले के समान वस्त्र और आभूषणों से आचार्य की पूजा करें। इसप्रकार पूजा करने पर रोहिणी देवी उस बालक को छोड़ देती है। तृतीये धन दत्तेति वत्सरे क्षुद्र देवता, गृह्णाति बालकं सोपि न पश्ये देव किंचन ॥१॥ चलतैस्ट करो वामो ज्वरोश्च सश्रमो महान, आदत्ते चापि नाहार कृशो भवति सर्वथा ॥२॥ प्रतिक्रिया विकारस्य कथ्यते चौषद्यादिभिः, दलावण्य पिणयाक मोचनं क्षीर सपिंषी राज माषं मुगा पूप मंडके क्षु रसानऽपि पूरिका बीही लाजांश्च कांस्य पात्रेति विस्तृते ४ ॥ परिपूर्य ततो हेम प्रतिमा पल संमिता कौशैयां श्रुक युग्मां शांत द्रव्योपरि विन्यसेत् अर्चरोत गन्धं पुष्पायै स्तांबूलं च सर्मपोत, अबोन माष पूपेन सर्पिषोऽपि समाहितः आहूति भिरऽ थाष्टाभि होंमं कुर्या द्विभाव सौ, गृहस्य पूर्व दिग्भागे रविस्तं गते सति ॥७ ॥ CSSISTRISISTRISTOTS051५२२ PERISTOTSTOTRTOISEXSTOTEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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