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________________ CASS15101510150151215 विधानुशासन 950152519751015IOISS त्रिवासरं बलिं दद्यात् संस्मरन् धनदाउमपि, पंच पल्लव नीरेण शिशोः कत्वाऽभिषेचनं ॥८॥ ब्राह्मणमंऽ बिकांचैव पूज्येत् पूर्व वस्तुभिः वस्त्रासनाचे प्रमुदितं कुर्यात् बलि विधायकं ||९|| एवं बलि विधानेन धन दत्ता विमुंचति ॐ नमो धन दत्ते एहि-एहि बलिं ग्रन्ह- ग्रन्ह मुंच-मुंच बालकं स्वाहा ॥ ॥ इति तृतीयो वत्सरः ॥ तीसरे वर्ष में धन दत्ता नाम की देवी बालक को पकड़ती है तब बालक कुछ भी नहीं देखता। उसका बायाँ हाथ चलता है, बुखार हो जाता है - यह बहुत परिश्रम किया हुआ मालूम पड़ता है, भोजन नहीं करता है और बहुत दुर्बल हो जाता है। इस विकार की प्रतिक्रिया औषध आदि से करने का उपाय कहा जाता अमकीला पानी भीगी हुई तिलों की जाउ, केला, दूध, घृत, लोबिया, मूंग के, पुवे मंडवा गन्ने का रस पूरी ब्रीहिधान और चावल की खील को अत्यंत बड़े कांसी के बरतन में रखकर, उसके ऊपर रेशमी कपड़ों से ढंकी हुई एक चार तोले सोने की प्रतिमा को रखे । उस प्रतिमा का धूप पुष्पादि से पूजा करके पान देवे फिर अन्न उडद के पूर्व घृत से एकांत चित्त होकर दिन की समाप्ति पर सूर्य के छिप जाने पर, घर के पूर्व दिशा के भाग में अग्नि में आठ आहुति मंत्रपूर्वक देकर होम करें। इसप्रकार धनदत्ता देवी को स्मरण करता हुआ तीन दिन तक बलि देवे, तथा पाँचों पत्तों के पकाये हुवे जल से बालक को स्नान करावे ब्रह्मा और अंबिका देवी के चैत्यालय में सब चीजों से पूजन करे तथा बलि कराने वाले आचार्य को वस्त्र, आसन आदि देकर प्रसन्न करे। इसप्रकार के बलि विधान करने से धनदत्ता उस बालक को छोड़ देती है। चतुर्थे शाकिनी नाम वत्सरे देवता मकै, पीडियेत् सोऽपि महता ज्वरेण परितप्यते प्रतिक्षणं सबलत्येष भवे । होस्य पांडुरः, सविकारं हसत्येव कथ्यतेऽस्ट प्रतिक्रिया ॥२॥ ॥३॥ ऊदलावण्य पिवद्याकमोदनं सूप सर्पिषी निधायै, तानि वस्तूनि कांस्य पात्रेऽति निर्मले 050521501501525105/५२३ PSIRISTRI501501585213
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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