SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 0505051052505 विधानुशासन PAHIDISTRISTOISTRISTRIES भानोरुदय बलायां प्राच्यां दिशिं विनिक्षेपत् मेषदंताऽहिनिम्नॊक वहांऽपिनरव सर्षपान |॥१०॥ पलांडु कुटजं चैव अवचूर्ये समांशतः तेन धूपायितं कुर्यात् तत शरीरं च सर्वतः ॥११॥ -- श्री यक्षमूलैरऽश्वत्थ पलाश त्वरिभरऽन्वितं जलं संतापप्यते नैव कुर्यात्स्वानं ततः शिशो: - ॥१२॥ - - - गंध सारेण यालस्य लिंपे देहं समं ततः सप्त वासरमेतेन विधिना मंत्रपूर्वकं ॥१३॥ गृहस्य पूर्व दिग्भागेशुचि भूत्वा बलिं क्षिपेत् बयाणं यक्षिणी चैव पूजयेत्पूर्व वस्तुभिः ॥१४॥ ||१५॥ आचार्याय ततः पूजा विद्यातव्या यथापुरा एवं : समर्चिता देवि रोहिणी तं विमुंचति ॐनमो रोहिणी एहि एहि बलि गृह गृन्ह मुंच बालकं स्वाहा इति बलिं विसर्जन मंत्रः इति द्वितीयो वत्सरः दूसरे वर्ष में बालक को रोहिणी नाम की देयी पकड़ती है उस देवी के पकड़े जाने पर बालक बहुत प्रकार के विकार दिखलाता है। वह रक्त मिला हुआ वमन करता है मूत्र भी लाल होता है उसका दायाँ हाथ चलता है पराये वश में होकर जमीन पर गिर पड़ता है शरीर में कमल के फूल की सी गंध आती है। विकार के कारण खूप रोता है। उसके दोनों नेत्र लाल हो जाते हैं । इसका प्रतिकार कहा जाता है-खीर, गुड़,जन, घृत, राज माष लोभिया (चौले) (राई, उड़द) दही, उड़द, के पुवे दाल भुने हुए तिलों की पिष्टी, तिलों की खल जो नमकीन जल में भीगी हुई हो, इन सबको एक बड़े भारी तीन सेर के कांसी के बर्तन में रखकर उड़द की पिट्टी से बने हुवे दो कमल के फूल और बालक के शरीर पर से उतरे हुवे उबटना को बलि के ऊपर रखकर दो लाल वस्त्रों से लपेटी हुई एक पल (४ तोले) के बनी हुई सोने की यक्षिणी की प्रतिमा, जो लाल माला और लेप से CASIO51015125512151055555| ५२१ PISSISTRISTORTOISTOISEDIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy