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________________ PoPSPSPSPSS विधानुशासन PPPSP59595 बराबर लेकर बालक के शरीर में उसकी धूप देखर बालको पत्तों के उबाले हुये पानी से स्नान करायें। फिर शीतलनाथ स्वामी के यक्ष ब्रह्मा तथा नेमिनाथजी शासना देवी अंबिका (कुष्माडिनी) की पहिले के समान पूजा करें। अंत में वस्त्र और आभूषण आदि देकर आचार्य का सत्कार करें इस महान बलि से संतुष्ट होकर नंदिनी ग्रही बालक को छोड़ देती है । गृन्हाति रोहिणी नाम द्वितीये वत्सरे शिशुं तया देवतया ग्रस्तो विकारान कुरुते बहुन् सह रक्तेन वमति मूत्रे चापि अतरिक्तिमा । वामश्चलति हस्तोऽस्य पतेत् पर वशोभुविः देहः कुवलयाभोस्य स विकारं च रोदिति भवतश्चक्षुषी रक्ते कथ्यतेऽस्य प्रतिक्रिया पायसं गुडम न्नाज्य राज माष दधीनि च मा पूपं ससूपं च पिष्टं भृष्ट तिलोद्भवं ऊद लावण पिण्याक्रमण स्थाप्याति विस्तरे पल षष्टया परिमिति कांश्य पात्रेनिवेश्य च माष पिष्टेन रचितं पद्म कुवलयद्वयं शिशुवद्वर्तन संजातमिदं च बलि मूर्द्धनि रक्त वस्त्र युग छन्न रक्त माल्यानुलेपनं सौवणी' प्रतिमामेक पलेन रचितामऽपि अर्चिते गंध पुष्पाद्यै स्तांबूलेनाऽन्विते वलौ ततो वाऽवशिष्टाऽन्नैराहुतिनां विभावसौ अष्टा विशंति में तैन मंत्रेण जुहूयात् शुचिः तत तांबूलमुपादाय मोदकुंभ ततो बलिं 2/52/52525252525 47. 152523 ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ 113 11 ॥ ४ ॥ ॥ ५ ॥ ॥ ६॥ || 61 || || 2 || ॥ ९ ॥ एनड
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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