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________________ esP55 विधानुशासन 696959695 करे, प्याज, सरसों, भेड़ के सींग और उसके पैरों के नाखून को पीसकर उससे बालक के शरीर पर लेप करे । फिर बालक को पांचो पत्तो के पकाये हुवे जलसे स्नान करावे तथा बलि देने वाले को वस्त्र आदि की दक्षिणा देकर उसको संतुष्ट करे क्योंकि उसको संतुष्ट किये बिनाग्रह बालक को नहीं छोड़ते । दशमें मासि गृह्णाति कापिशी नाम देवता निगृहीतस्तया सोपि कृशो भवति बालक : नाहारं समु पादते नोन्मीलयति चक्षुषी स विकारं च रुदत्येष सवलत्येव मुहुर्मुहुः एतस्याः विकृतेरे वं प्रति कारोपि कथ्यते उदनं माष पूपं च धृत पिंड खलं गुडं उदनं रक्त वर्ण च कांश्य पात्रे निघाय च ध्वज घंटात पत्राणि पिष्टेन रचितानि च निक्षिपेत्पात्र मध्य स्थयले रूपरिसर्वतः पलेनैकेन रचितां सौवर्ण प्रति मा मपि कौशयक युगछन कुर्यात् शिरसितांबलैः लिवासरं शुचिर्भूत्वा कृत्वा नीरांजनाविधिः गृहस्य पूर्व दिग्मार्ग प्रक्षिपेन्मलं विद्वलिं गां निर्मोक सर्षपांडंधि नरवान्वितां पांडवर्ह निर्माल्य गज दतत्समांशिन: चूर्णी कृत्य शिशोर्वपुलेपं धूपंतै नैव कारयेत् ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥३॥ ॥ ४ ॥ ॥ ६॥ ॥७॥ 11211 ॥ ९॥ पंचपल्लव नीरेण स्नानं कार्य शिशोस्ततः ब्रह्मणोप्यं बिकायाश्च कार्या पूर्ववदर्चना C5252525250505 424 15252525252525 ॥ १० ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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