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________________ eSPSPSC/ विधानुशासन 25PPS‍SP59a सर्पि क्षीरं गुड भृष्ट तिलापिष्टंच पायसं चतिलानपि विन्यस्य पाले श्रद्धे गरासि प्रतिमापि सौवर्णि रक्त वस्त्र द्वयान्वितां निय गंध पुष्पाद्यैस्तांबूलेन पुरस्कृतां तेन नीरांजनं कृत्वा वलिना शिशव पुरः सोन पूर्वदिग्भागे मध्यान्हे वासरलयं पांडु सर्षपा न्मेषश्रृंगं पाद नखानपि वसा मध्य विमांसेन पिष्ट्रा शिशुं विलेपनं ॥ ५ ॥ अभिषिचेत्तदा बालं पंच पल्लव वारिणा बलिं प्रदा वस्त्रादिदत्वा तंपरि तोषयेत् परितोष बिना तस्या नस्याद्राह विमोक्षणं ॥ ६॥ 112 11 बलिं समंत्र कं दद्यात्त कृत्वाश्रुद्धिंजनः श्रुचिः ब्रह्मणोप्यं बिकायाश्च कुर्यात् पूर्व वदर्चन ॐ नमः कुंभ कर्णि ऐहि ऐहि बलिं गृन्ह गृन्ह मुंच मुंच बालकं स्वाहा इति वलि तिसर्जनमंत्र: || 19 || ॥९॥ ॥ १० ॥ इति नवम मास नव महीने में कुभं कर्णीनाम की देवी के पकड़ने पर प्रत्येक समय बालक का शरीर टूटता ही रहता है। बहुत बुखार होजाता है। वह अपने शरीर को हिलाता है। अपने नाखूनो को तोड़ता है । रातदिन रोता हुआ बिलकुल भी दूध नहीं पीता है । उसके शरीर में कमल की सी गंध आती है। उसका सारा शरीर हर वक्त निश्चेष्ट हुआ ठहरा रहता है। इस भारी विकार का भारी है प्रतिक्रिया है - नमकीन पानी में भिगोयी हुई खल उड़द के पूर्व चावल, (भात) घृत, दूध, गुड़, सिके हुवे तिलों की पिष्टी, खीर और तिलों को शुद्ध भारी बरतन में रखकर दो लाल कपड़ों से ठकी हुई यक्षिणी को सोने की प्रतिमा सहित रखकर उसकी धूप फूल माला आदि से और तांबूल से पूजा करके उस बली से बालक के सामने मंत्र पढ़कर, बालक के मकान के पूर्व की तरफ दोपहर के समय तीन दिन तक पवित्र होकर, मंत्र सहित रख देवे । पहिले के समान ब्रह्म और अंबिका देवी की पूजन 95969695959595 ५१४PSPS959595959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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