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________________ SASRISOSIASTD35015 विधानुशासन 95015015ICISIOISON और उसको धूप फूलमाला आदि से पूजा करे । उसको दोपहर के समय लेकर मंत्र बोलते हुये पूर्य दिशा में गाय के मध्य में बलि रखे । फिर पहिले के समान ब्रह्मा और अंबिका की चैत्यालय में पूजन कर पाँचों पत्तो के पकाये हुवे जल से बालक को मान करावे । फिर आचार्य का वस्वादि से सत्कार करे तो बालक स्वस्थ हो जाता है | अष्टमे मासी महाति जैनी लामेति देवला: श्रयदास्याः करो वासचलत्यस्य सदाशिशो: निष्टो मूर्छित स्तन्यन कदाचित पियत्या सौ अनु का साया कारा दृश्यं ते स्फोटका स्तनौ ॥ २॥ तस्य मलादिभिः को पि प्रतिकारो न विद्यते विद्ये वशं गते जंतो नान्यः शक्यं चिकित्सितु ॥३॥ आठवें महिने मे जैनी नाम की देवी बालक को पकड़ती है। उसके मुँह में युशकी और बायाँ हाथ में बालक के चंचलता करती है । बालक निश्चेष्ट और मूर्छित होता है और यह स्तन से दूध नहीं पीता है। उसके शरीर में सरसों के आकार के दाने फूट पड़ते हैं । उसका इलाज मंवआदि से भी नहीं हो सकता है । उस प्राणी को भाग्य ही बचा सकता है और कोई प्राणी चिकित्सा से उसकी रक्षा नही कर सकता है। इति अष्टमो मासः गन्हीते नयमें मासि कुभं कर्णति देवता प्रतिक्षणं भवेत गालस्या स्य भूयान्नपि ज्वरः चाल यत्रोष मूनि राई यत्यात्मन नरवान् दिवानिशं रुदन्तेषापियंत् तीरं न किं चनः ॥२॥ गंधं कुवलय स्टोव तस्य वमणिसर्वतः शरीर सर्वदाप्यस्य स्तंभी भूयायति तिष्ठति ॥३॥ महतो स्य विकारस्य महात्येव प्रतिक्रिया उद लावणापिनाक माष पूयान्वितो दनं ॥४॥ CASSISTRICISTORTOI5T05५१३ 0505555555555CASCIEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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