SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 252525252525_ftengeneza YSY5YSY5Y3Y5 सात मासि गन्हात त्रिमुरखीनाम देवता निश्चसत् उर्द्धमंत्यंतं तं भेदयति वपुषः सुगंधत्यस्य देहोति मालती पुष्प गंधवत् वदनोद्घाटनं चापि कुरुते सौ प्रतिक्षणं प्रतिकार प्रकारोपि विकारस्यास्यकथ्यते बीही अन्नं माष पूपं च रसाल रस सर्पिषा रसाल फल वस्तुनि पिष्टेन रचितान्यपि आदाय विमलेकांश्य माजने रोचने वरे ॐ नमः प्रतिमां चादि सौवणी चित्र वस्त्र ध्वजान्वितां बलेरुपरि विनस्य गंधाद्यैस्तांसमर्चयेत् मध्यान्हे तमुपदाय मंत्र में तदुदीरयन् पूर्वस्यां दिशि विनस्य ग्राम मध्ये क्षिपेत बलिं ब्रह्ममंबिका चापि कुर्यात्पूर्ववदचितौ पंचपल्लव नीरेण कार्येत् स्त्रपनं शिशोः आचार्य पूजिते पश्चात स्वस्थो भवति बालकं : लीमुरखी ऐहि ऐहि बलिं गृन्ह गृन्ह मुंच बालकं स्वाहा । ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ || 3 || ॥ ४ ॥ ॥५॥ ॥ ६ ॥ ॥७॥ इति बलि विसर्जन मंत्र: इति सप्तमो मासः सात महिने में त्रिमुखी नाम की देवी बालक को पकड़ती है उस समय बालक उंचा श्वास लेता है और अपने शरीर को भी तोड़ता है । उसके शरीर में मालती के फूलो के समान सुगंध आती है और वह जरा जरा सी देर में अपने शरीर को खोलता है । उसका उपाय इस विकार का कहा जाता है । व्रीही अन्न का भोजन, उड़द के पूवे, आम का रस, घृत, आम के फल तथा यही चीजें पिट्टी की बनी हुई लेकर, उनको सुंदर कांसी के बरतन में रखकर, श्रेष्ट लाल कमल सहित सोने की बनवाई हुई यक्षिणी की प्रतिमा जो रंग विरंगे कपड़ों और ध्वजा से युक्त हो बलि के उपर रखकर, 52975 ५१२ P5959595959595 69595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy