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________________ SSIOTSEXSTORISE5 विधानुशासन LISTO5051255105505 चतुर्थे मासि गहाति पिंगली नाम देवता हस्तीवालासतिग्रस्तो नारच्छास्य विद्यते ॥१॥ मुख्यादास्टाः पूर्तिगंधि न्निश्च॑ष्टः कांश्य भाजन समाधासं च निर्जीवो भवतीच्छं विकारवान् ॥२॥ ऐवं विद्याश्चेष्टाया गहीतस्य तदाशिशो न मंत तत्रं वलिभिः प्रतिकारो विधीयते तं विधे वशंग विद्याय एवं विकत्ति शिशः ॥३॥ चौथे महिने में पिगंली नाम की देवी के पकड़ने पर बालक दोनों हाथों को चलाता है, उसकी दूध पीने की इच्छा नहीं होती है । उसका मुँह सूखने लगता है उसके शरीर से पवित्र गंध आने लगती है। यह कांसी के बरतन की तरह थेष्टा रहित होजाता है |उसको श्वास खूब आते हैं, वह निर्जीव और बिगड़ी हुई इच्छा वाला हो जाता है । जिस बालक में इस प्रकार के लक्षण पाये जाये उसका इलाज न मंत्र न तंव और न बलि से ही हो सकता है । यदि यालक में इस प्रकार के विकार पैदा हो जाये तो उसे उसके भाग्य केही वश का जानना चाहिये । गृहाती पंचमे मासि गोकर्णी नाम देवता हेम वर्ण भवेत, सद्यो गृहीतस्य ययुः शिशो : ॥१॥ ज्वरेण महता तप्तः श्रुष्यदास्यो निशरूदन उच्याते तस्य प्रतिकारो विद्यानं बलि कर्मण ॥२॥ बीही अनं माष पूपाज्या पायसे सुरसान्यितं क्षीरेण पाचिताः पूपा पंच रखाद्यानि शल्लवः ||३|| कांस्टो पाले विद्यातव्या शुद्धे गुरुणि विस्तृते प्रतिमां चापि सौवर्णी पीत वस्ल द्वयान्विता ॥४॥ बलिमम्य_ गंद्यायै स्तांबलं च समर्पोत बलिमादाय गेहस्य पूर्वभागे लिवासरं 05015015TOASTOISO15105 ५०९350151235100505PISOISS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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