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PSPSP595
विद्यानुशासन
न्ही मध्य दिने भानौ निद ध्यान्मंत्र पूर्वेकं पूज्य श्चैत्यालये ब्रह्मायक्षिणी चापि पूर्ववत्
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पंचपल्लव युक्तेन स्त्रापयेत् शिशु मंभसा बले विधायकस्यापि पूजादेयाथ पूर्ववत्
॥७॥
ॐ नमो गोकर्णी ऐहि ऐहि बलिं गृन्ह गृन्ह मुंच मुंच बालकं स्वाहा । इति बलि विसर्जनमंत्र
इति पंचमी मासे
देवी के
पाँच लड़ने में पर बालक के शरीर का रंग सोने के समान पीला पड़ जाता है । वह बुखार से अधिक गरम हो जाता है। उसका मुँह सूख जाता है। रात दिन रोता रहता है। उसकी चिकित्सा का वर्णन बलि कर्म आदि से किया जाता है । धान के अन्न उडद के पूये घृत खीर और गन्ने का रस दूध में पकाये हुवे पूवे पांचो प्रकार के भोजन सत्तू लेकर दो पीले वस्त्रों से ढकी हुई यक्षिणी की सोने की बनी हुई प्रतीमा को शुद्ध भारी और बड़े कांसी के बरतन में रखकर और बलि की धूप फूलमाला आदि से पूजा करके, पान का बीड़ा देकर, घर के पूर्व भाग में तीन दिन तक सायकाल में रविवार को मंत्र पूर्वक बालक पर उतारा करके रख देवे और पूर्वक सम्मान चैत्यालय में ब्रह्मा और अंबिका की पूजन करे। पांचो पत्तों के पकाये हुवे जल से बालक को स्नान करावे तथा पूर्व के समान बलि करने वाले आचार्य की वास्त्रादि देकर सत्कार करेषष्टे मासिनि गृहाति पंकजनामाग्र ही शिशु निगृहीतो रुदेत् तीव्रं तथा देव्या दिवानि
ज्वरेण महता तप्तः श्वसित्यूर्द्धपुनः पुनः उदरे शूलवांश्चापि प्रतिकारोंपि कथ्यते
॥ ६ ॥
पल षष्टया कृते कांस्य भाजने ति विस्तृते उदनं माष पूपं च पायसं सह सर्पिषा
मंडकान् विविधानि इक्षुरसांश्च सह शक्तुभिः ध्वजात् पलांबु रुहै मद्धिं पिष्ट कृतं बलौं
॥ १ ॥
॥ २ ॥
॥ ३ ॥
॥ ४॥
निघायै तानि वस्तुनि रस वंति महांति च पलेन कृत सौवर्ण प्रतिमां वस्त्रे वेष्टितां
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॥५॥