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________________ CISIOA5TOSDEOSIS विधानुशासन SCISISIOSIONSION वीहीअन्नं पायसं सर्पि मुद्रोक्ष रसादि वान पिष्टं भ्रष्ट तिलानां च पाले कांस्य विनिर्मितं स्दल चितां रेल प्रतिमा पर दासा अभ्यर्च्य गंद्य पुष्पाद्यै स्तांबूलेनान्वितं बलिं ॥४॥ प्राग्भागे बलिं गेहस्या मध्यान्हें प्रक्षिोत् शुचिः पंच पल्लव नीरेण स्नानंकुर्यात् तदा अर्भक पलाहु सर्षपं चैव निर्माल्यं पिपली तथा चूर्णी कृत्य विद्यातव्यो विलेपन विधिः शिशो ॥६॥ ब्रह्माणो प्यं बिका या श्च पूजा पूर्वोदितः क्रमात् त अनेन बलिनां मंचद्र हीतं गौतमी शिशः ॐ नमो गोतमी ऐहि ऐहि बलिं गृन्ह गन्ह मुंच मुंचे बालकं स्वाहा ॥७ ॥ आचार्यमथ वासोभि इक्षिणाभिश्च तोषयेत् यत् स्तदशगाः सर्वाभवंति ग्रह देवता ॥ ८॥ इति तृतीयो मास तीसरे महीने में गौतमी नाम की देवी बालक को पकड़ती है-उसके पकड़ने पर बालक बहुत उंची आवाज से रोता है । यह बहुत टट्टी करता है उसके शरीर में दुर्गंध आने लगती है उसका प्रतिकार उपाय कहा जाता है |धान के अन्न की खीर घृत मूंग गन्ने का रस और पिसे हुए काले ( पके हुवे) तिलो को कांसी के बने हुये वर्तन में सोने की बनी हुई यक्षिणी की प्रतिमा को दो वस्त्रों से ढ़क कर गंध फूल माला आदि और तांबूल सहित वलि को घर के पूर्व के भाग में दोपहर के समय पवित्र होकर मंत्रपूर्वक रख्खे , तथा पाँचो पत्तों के पकाये हुवे जलसे बालक को खान करावे - प्याज सरसों चढ़ाया हुवा निर्माल्य अन्न और पीपल के चूर्ण का बालक के शरीर पर विधिपूर्वक लेप करे। तथा पहिले बताई हुई विधि से ब्रह्मा और अंबिका देवी की पूजा करे। इस प्रकार विधि करने पर गोतमी ग्रही पकड़े हुवे बालक को छोड़ देती है । दक्षिणा और घस्त्रादि आदि से सत्कार करके आचार्य को संतुष्ट करे जिस के वश में सब ग्रह देवता होते हैं । SSICI51315015101510151015 ५०८ P1.510151215015015015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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